महंगाई झेलकर हम बरबाद हो रहे हैं
व्यवसाई जितने भी हैं आबाद हो रहे हैं
मिलती है छुट उनको आता है जो इलेक्सन
किसको नहीं पता पर नाबाद हो रहे हैं ॥
कैसे खरीदें घिया किस भाव लायें तोरी
घर में कहीं भी रख लो होती है सारी चोरी
मिलती नहीं है रोटी भर पेट आज सबको
अरहर बना नियामत खाते हैं थोडी थोडी ॥
चावल चना मिलेगा किस भाव ये न पूछो
कड़वा बडा करेला नहीं राजमा की सोचो
फल दूध को भी लाये कुछ दिन हीं हुए हैं
बच्चों की फिश इतनी बीएस बाल को हीं नोचो ॥
चलता रहा जो ऐसा बन जायेंगे भिखारी
अपने हीं आका कल को हो जायेंगे दुखारी
आ जायेंगे सड़क पर तारों की छांव लेकर
जागो जरा समय से इतनी विनय हमारी ॥
आए थे एक दिन वो बतलाने कोई कारन
होने भी दो ओलम्पिक कर लेंगे सब निवारण
बेकार रो रहे हो ख़ुद को जरा संभालो
चलकर के चीन देखो कैसा वहां का आलम ॥
जीने का हक हमारा छीनो न आज हमसे
अफ़सोस आज सबका कुछ रोष है तुम्हीं से
बातें बड़ी न करना वरना न सुन सकेंगे
खाने दो रोटी सबको कल्याण है इसी से ॥
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