गुरुवार, 25 दिसंबर 2008

काश की हम पंछी बन जाते

काश की हम पंछी बन जाते
नील गगन में उड़ते जाते
सीमा सरहद कुछ न होता
हँसते गाते बस मुस्काते
काश की हम पंछी बन जाते

कुदरत का अनमोल खजाना
मकसद होता उसे सजाना
शाम सुहानी सबकी होती
गुन गुन गाते न घबराते
काश की हम पंछी बन जाते

बगिया होती सबको प्यारी
सबके सब होते अधिकारी
करते चुहल कभी आपस में
अपनों को हंस कर अपनाते
काश की हम पंछी बन जाते

अपनी सबको आज पड़ी है
अनचाही दिवार खड़ी है

इतने ऊँचे पहुँच नहीं पर ,
पर होते तो पार कराते
काश की हम पंछी बन जाते

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