बुधवार, 10 दिसंबर 2008

कसम तुम्हें है भारत की

दशको बीते आजादी के क्या क्या हमने पाया है ?
प्रेम भाव और भाईचारा क्या कुछ नहीं गंवाया है ?
आया जो मतदान का मौसम छेड़ रहे तुम जख्मों को
कभी जाती कभी धर्म को लेकर सबने बहुत सताया है
छोडो भी अब भेद बढाना कहते जिसे सियासात भी
रहने भी दो मिलजुल कर अब कसम तुम्हें है भारत की
हिंदू मुस्लिम भाई हैं हम कैसा सुंदर नाता है
देव स्थल हैं मन्दिर मस्जिद शीश नवाना आता है
गुरु जनों की पावन धरती ईसा को भी प्यारी है
देश प्रेम है सबके अंदर प्यार निभाना आता है
कुर्सी होगी तुमको प्यारी धरती मेरी नियामत की
छोडो भी बेकार की बातें कसम तुम्हें है भारत की
नर और नारी एक बराबर क्यों उनको बहकाते हो ?
शक्ति की करते हैं पूजा इसको भी झुठलाते हो
हक समान है हम सबका पर कुछ कर्तव्य हमारे हैं
रहने भी दो ताल मेल अब क्यों सबको भरमाते हो
सोते रहे हो पॉँच बरस अब मौका दिया शिकायत की
बनो भी सच्चे देश भक्त अब कसम तुम्हें है भारत की
युवा जन प्रतिभाशाली पर उनको भी बहकाते हो
बिना परिश्रम मिले सफलता क्यों उनको समझाते हो ?
आँगन में आतंकवाद है कल का आलम क्या होगा
आग उगलने लगी हैं गलियाँ तुम तो इन्हें भुनाते हो
शर्माती है मानवता तो बनती भाव हिकारत की
सुध बुध लेना सीखो सबकी कसम तुम्हें है भारत की
बाहर निकलो आँखें खोलो देखो दुनिया बदल गई
आपस में हम लड़ते हैं पर सबकी किश्मत बदल गई
करता है कोई क्षेत्र वाद प्रतिवाद करे मनमानी पर
'पाठक परदेसी' की फितरत हसरत फिरसे मचल गई
आओ अब तो हाथ मिला लो गुजरे वक़्त शरारत की
रहने दो गुलजार ये गलियां कसम तुम्हें है भारत की
Nagendra Pathak

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