चुप चुप बैठे पाक के आका जैसे सूंघा सांप
जनता , वर्नि , दुर्रानी ने लिया था जिसको भांप
लिया था जिसको भांप नहीं है अजमल आज पराया
जिसने आकर मुंबई में सबके दिल को थर्राया
अंधा धुंध चला कर गोली कितने निर्दोष को मारा
पाकिस्तानी है वह जालिम सबको कह कर हारा
माने नहीं गिलानी अब तक होगी उनको ग्लानी
अलग थलग पड़ेंगे जग में होगी तब परेशानी
युद्ध की बातें कर के वे कमजोरी जता रहे हैं
दुनिया वाले जान गए पर धता बता रहे हैं
बाकी अभी स्वीकार है करना जो हैं मुर्दा घर में
मिटटी को मिटटी मिल जाए जाने क्या है मन में
कितना ही इनकार करें पर साबित सब होता है
आतंकवाद की धरती पर मानवता ही रोता है
सेना भी अपनी कमजोरी छिपा रही है अकड़ से
लश्कर हो या मुजाहिदीन सब बाहर उनकी पकड़ से
अगर नहीं जो सम्हले अब भी जीना दुस्कर होगा
जलने लगेगा आपका घर तो चीन भी क्या कर लेगा
जागो प्यारे दुश्मन अब भी क्यों रहते हो छिप छिप
मिला कर नजरें बातें कर लो कब तक रहोगे चुप चुप
रविवार, 11 जनवरी 2009
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