भारतीय बजट
प्रणव मुख़र्जी पढ़ गए बजट देश का एक
हम अज्ञानी मानव मन में शंका आज अनेक
शंका आज अनेक कहां गई पहले वाली सोच
भूल गए मतदान के होते या फिर आ गई मोच
बजट बनाया जिसमें होंगे सस्ते टी बी फ्रिज
कम्यूटर भी बन जाएगा जीवन का एक ब्रिज
लेकिन पेंसन को क्यों छेडा जो अंतिम आधार
आधे से ज्यादा ले लेंगे कह कर बस साभार
लाले पड़े हैं दालों के अब सब्जी नहीं है सस्ती
क्या खाएं हम क्या पहनें हम कैसे होगी मस्ती
आज नहीं अब हाथ हमारे कल भी नहीं हमारा
खुशाली का जुड़वां भाई अपना पाँव पसारा
जाएँ कहाँ बता दो दादा शहर नहीं अब अपना
गावों की तो बात न पूछो वह तो कब से सपना
आगे अगर न रे गा जैसी हो कोई स्कीम
पंजीकरण करा लें जाकर साथ में पूरी टीम
बिना काम ही दाम मिलेगा ऊपर से बस छुट्टी
जाते जाते जुड़ जायेगी जीवन में वह मिटटी
या फिर बोलो बन जाएँ हम भी कोई अल्पसंख्यक
जाने क्यों अपराधी जैसे दीखते अब बहु संख्यक
तेरी नजरों में आ जाएँ क्या है वह तरकीब
पुरुष जाती ऊपर से हिन्दू ऐसी ख्कन नशीब
कह पाठक कर जोर सुनो जी सबको मानो एक
बजट सभी सद्भाव पूर्ण हो काम करो अब नेक
नागेन्द्र पाठक ( दिल्ली )
2 टिप्पणियां:
kya kavitayen hai sir ... wah wah
what n idea sirji
एक टिप्पणी भेजें