मंगलवार, 2 मार्च 2010

बुलंदी

बुलंदी

मुश्किलों को साथ लेकर जो नहीं चल पायेगा
इस जमाने में बुलंदी वो कहाँ से पायेगा

हो बिमारी या पलायन या हो बिपदा की घडी
कष्ट पर हो कष्ट या फिर आपदा हो आ पड़ी
आग पर चलना पड़े या पर्वतों की श्रृंखला
सामने हो शेर या फिर मौत हो आकर खड़ी
वक्त आने पर नहीं जो आत्मबल दिखलाएगा

इस जमाने में बुलंदी वो कहाँ से पायेगा ||

क्यों हमारी राह में बस फूल हीं खिलते रहें ?
क्यों नहीं आगे बढ़ें हम शूल का स्वागत करें ?
क्यों कभी कमजोर बन कर मांगते हैं हम दुआ?
क्यों नहीं खुद हीं डगर पतवार भी बनते चलें ?
राह हो दुर्गम मगर जो चलने से घबराएगा
इस जमाने में बुलंदी वो कहाँ से पायेगा ||

सफल होना चाहते तो गरल भी स्वीकार कर
उन्नति जो चाहते तो कष्ट अंगीकार कर
जिंदगी जीना जो चाहो हर कदम मरते चलो
मुश्किलों के सामने तुम शीश को नीचा न कर
नाज जो निज कर्म पर हो जाह बनता जाएगा
हर जमाने में बुलंदी पर वही राग पायेगा ||

1 टिप्पणी:

Kaviraaj ने कहा…

बहुत अच्छा । बहुत सुंदर प्रयास है। जारी रखिये ।

हिंदी को आप जैसे ब्लागरों की ही जरूरत है ।


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