रविवार, 7 मार्च 2010

माटी की खुशबू

माटी की खुशबू दिला दो रे भाई
जिस पर न्योछावर है साड़ी खुदाई
वो नदिया का पानी वनों की रवानी
नहीं भूल पाया हूँ कोई निशानी
वो बागों के झूले वो उड़ते बगुले
वो गलियाँ पुरानी वो मिट्टी के चूल्हे
वो गेहूं की बाली भरी थी या खाली
सभी को पता था सभी थे सवाली
न दिखती है सरसों न दिखती है राई
वो माटी की खुसबू दिला दो रे भाई ||
लड़कपन में लडती वो लड़कों की टोली
वो फागुन में आती थी हुडदंग होली
वो सावन का आना नदी में नहाना
वो पूजा का मौसम गया क्यों ज़माना
वो मक्के की बाली वो स्वाद निराली
वो गन्ने की खेती वो मीठी सी गाली
वो प्यारी सी दुनिया हुई क्यों पराई
वो माटी की खूसबू दिला दो रे भाई ||
कहाँ आ गया मै कहर ढ़ा गया मैं
कैसी ये बस्ती शहर आ गया मैं
नहीं कोई सुनता सभी भागते हैं
किसकी कहूँ मैं सभी आंकते हैं
कभी मांगते हैं ये पहचान मेरी
कभी जांचते हैं वे छोटी सी गठरी
समझ पाऊं मैं न करूँ क्या गुसाईं
वो माटी की खूसबू दिला दो रे भाई ||
वो माटी की खूसबू दिला दो रे भाई ||

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