सोमवार, 15 मार्च 2010

भीमा नन्द

भीमानंद

वस्त्र गेरुआ लम्बे बाल
मीठी वाणी मोटी खाल
चाल निराली करनी काली
सत्ता पक्ष करे रखवाली
दूर दूर तक फैली माया
मनमोहक है जिसकी काया
लेकिन नाग वंश के जैसे
होता नहीं उसे मलाल ||
पूजा संध्या सब करवाता
धर्मं धुजंधर वह कहलाता
माया की महफ़िल का पोषक
कोई करता नहीं सवाल
इसीलिए करता मनमानी
जग जाहिर इसकी शैतानी
फिर भी जन मानस की चुप्पी
पैदा करता कई सवाल
आतंकी भी इससे पीछे
चला गया वह इतना नीचे
जन गन मन बस देख रही
है साँस रोक कर आँखें भींचे
इसीलिए तो इसको भाती
मदिरा सेवन और सबाब
कैसे साधू इसको बोलें
क्यों न अपनी आँखें खोलें
भेष बदल कर हमला करने
आया फिर से एक कसाब
साधू तो सज्जन होते हैं
पर दुःख कातर वे रोते हैं
सोते नहीं कभीजीवन में
सबका भला सदा करते हैं
आज ज़माना बदल गया क्यों
ये तो लगते एक नवाब ||
बात नहीं एक भीमानंद की
कितने अब भी ऐसे बंदी
करतब करके निंदनीय जो
बन जाते जैसे परवाज
आओ मिलकर खोलें पोल
अपना भी बनता है रोल
वर्ना बदनामी हीं होगी
ढोंगी जब होंगे सरताज ||

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

क्यो करते हो
ईतना विश्वास
मिडिया ही है
सबसे बदमास

काले को गोरा
गोरे को काला
सच है बस थोडा थोडा
झुठ का पुलिन्दा झोला

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