मंगलवार, 6 जुलाई 2010

कर्मवीर

कर्मवीर
कौन कहा तक चल पायेगा ये तो कहना मुश्किल है
लेकिन दुनिया के प्रांगन में सबकी अपनी मंजिल है
बाधाएं आकर जब पलपल हमें हैं जगाती जाती हैं
मन बगिया को हिला डुला कर हमें सताती जाती हैं
लेकिन उसमें भी है मस्ति ,उसमें भी कुछ खुशियाँ हैं
आगे बढ़ कर नियति बन कर राह बनाती जाती हैं
कौन कहाँ तक सह पायेगा ये तो कहना मुस्किल है
लेकिन दुनिया के प्रांगन में सबकी अपनी मंजिल है
जीवन जल के जैसा है जो खोज रहा अपने ताल को
आज हमारा कल भी अपना याद करो बीते कल को
जो भी भूल हुए अनजाने उनको क्यों कर दुहराना
नजरें कर लो अर्जुन जैसी जीना चाहो कुछ पल तो
मानव हो तो मनन करो अंतर्मन सबका निश्छल है
दुनिया के इस प्रांगन में अब सबकी अपनी मंजिल है
कर्म करो फिर आहें भर लो ऐसी क्या मज़बूरी है
अपने ऊपर करो भरोसा जद्दोजहद जरूरी है
जन समझ लो पल पल सम्हालो समय नहीं रुकने वाला
लाभ मिले या होवे हानि मानो सब कस्तूरी है
' कर्मवीर ' अब कौन बनेगा ये तो कहना मुस्किल है
दुनिया के इस प्रांगन में अब सबकी अपनी मंजिल है

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