शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

वक़्त नहीं

हर खुसी है लोगों के दामन में
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं
दिन रात दोड़ती दुनिया में ,
जिंदगी के लिए ही वक़्त नहीं

माँ की लोरी का एहसास तो है ,
पर माँ को माँ कहने का अब वक़्त नहीं
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके ,
पर उनको दफनाने का भी वक़्त नहीं

सारे नाम मोबाइल में तो बंद हैं ,
पर उनको याद करने का वक़्त नहीं
गैरों की हम क्या बात करें ,
जब अपनों के लिए भी वक़्त नहीं

आँखों में है नींद बड़े
पर सोने का भी वक़्त नहीं
दिल है घावों से भरा हुआ
पर रोने का भी वक़्त नहीं

पैसों की दुनियां में ऐसे दौड़े की
थकने का भी वक़्त नहीं
पराये एहसासों की क्या क़द्र करें
जब अपने सपनों को हीं वक़्त नहीं

तू ही बता ऐ जिंदगी ,
इस जिंदगी का क्या होगा
हर पल मरने वालों को
अब जीने का जब वक़्त नहीं

इंटर नेट से

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