मंगलवार, 17 अगस्त 2010

प्यार बयार बहा कर दिलों में

बरसों से सिसकती भारत की धरती

लेने लगी है अंगड़ाई

ये तो एक सुरुआत है

आगे बाकी है बहुत सी लड़ाई

दबे कुचले भारत के किसान

पाने लगे हैं अपनी पहचान

मिलने लगी है कर्ज से मुक्ति

नहीं रहे अपने हीं घर में मेहमान

बच्चे विद्यालय जाने लगे हैं

अब वे भूखे नहीं पेट भर खाने लगे हैं

तन पर पूरे कपडे भी हैं उनके

और एकता के गीत गुनगुनाने लगे हैं

महिलायें नहीं रहीं अनपढ़ या जाहिल

कोई नहीं कहता उनको अब काहिल

मजबूत होकर उभर रही है मातृशक्ति

भंवर से निकलने लगा है अपना साहिल

लेकिन अभी भी है बाकी कुछ उलझन

विकाश के पथ पर पड़ी है कुछ अड़चन

थोड़े ही सही नासमझों की नासमझी से

समाज में दिखता है कहीं कहीं बिघटन

हमें फिर से समानता लाना होगा

भारत भू से जातिवादी भेद मिटाना होगा

प्यार बयार बहा कर दिलों में

देश भक्ति के गीत गुनगुनाना होगा

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