शनिवार, 11 जून 2011

कम्बल ओढ़े घी पीते हैं

नेताओं को नमन है जिनकी कृति अपार
भारत की धरती पर जन्मे करते वहीँ प्रहार

कहने को ज्ञानी सभी उनको है विश्वास
काट रहे अपनी हीं शाखा बन कर कलि दास

पार्टी हो कोई यहाँ सबके सब हैं एक
बोल वचन मीठे मगर मंशा नहीं है नेक

सत्ता में आते सभी करते हैं कोहराम
आये दिन के घोटालों से मुह से निकले राम

एक बार की जीत से पांच बरस की छुट्टी
कम्बल ओढ़े घी पीते हैं कर जनता से कुट्टी

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