काला धन वापस लाने का बना नहीं संयोग
बना नहीं संयोग जतन अब करने लगे है सारे
सरकारी अड़ियल रुख से टकराकर सब हारे
इतना धन परदेश पड़ा कि हम सब सोच न पायें
लेकिन आलम देश में ऐसा सोचें क्या हम खाएं
लेकिन आलम देश में ऐसा सोचें क्या हम खाएं
कर को भरते भरते सबका हालत हो गया खास्ता
बाजारों में नहीं मिलेगा आज कहीं कुछ सस्ता
आगे आकर बाबाजी ने मिल कर अलख जगाया
दिल्ली से पातंजलि पीठ तक अपना मंच सजाया
लेकिन सत्ता के अनुरागी बैठे आँखें भींचे
सोच रहे हैं भ्रष्ट लिस्ट में आ जाएँ न नीचे
लगने लगी है दिल्ली अब तो भ्रष्टाचारी ढाबा
अलख जगाने को तत्पर हैं कितने सारे बाबा
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