सोमवार, 5 सितंबर 2011

कहते उसको सजा नहीं

राहें हों आशान अगर उन पर चलने का मजा नहीं
आ जाये जो मुश्किल कोई कहते उसको सजा नहीं
पथरीली ऊँची नीची पगडण्डी पर चल कर देखो
दुर्गम गहन अन्धकार में अपने पासे तो फेंको
डर है ! डर के आगे भी दुनियाँ सतरंगी होती है
कर लो करतब मनचाहे पर स्वार्थ कि रोटी मत सेंको
मिले सफलता जैसे तैसे कहते उसको बजा नहीं
आ जाये जो मुस्किल कोई कहते उसको सजा नहीं
मानव मन कठपुतली जिसकी डोर उसी के हांथों में
रंग बदलना चाहो जितने हो जाती है बातों में
सोच हमारी हो हठ धर्मी , काम बिगड़ता जाता है
आगे उलझन बढ़ जाती है नींद न आती रातों में
कम पाकर संतुस्टी हो तो कहते उसको कजा नहीं
आ जाये जो मुश्किल कोई कहते उसको सजा नहीं
जीवन है अनमोल मगर हम समझ न पाए महिमा को
सीधी सच्ची रहें अच्छी समझ न पाए गरिमा को
भटक रहे हम राहों में तो कौन बचाने आयेगा
खुद हीं धर्म अर्थ बन जाएँ क्यों समय बिताएं सपनों में
बन मिशाल ले लो मशाल इससे अच्छी कोई फिजा नहीं
आ हीं जाये मुश्किल कोई कहते उसको सजा नहीं

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