मंगलवार, 27 सितंबर 2011

समय का पहिया

समय का पहिया चलता जाये न जाने किस ओर
हरदिन हवा बदलते देखा सुबह शाम और भोर
सुबह शाम और भोर भयंकर लगते सभी नज़ारे
भ्रष्टाचार कटार लिए सबके आगे हुंकारे
मालामाल हुए सब मंत्री कहते सेवक खुद को
महंगाई की मार निरंतर पड़ती जाये सबको
उनको क्या वे पञ्च बरस में बन जाते हैं राजा
कदम कदम पर जन जन का अब बजता जाये बाजा
काले धन के बादल देखो बरसे बाहर जाकर
मालामाल हुए परदेसी उनको गले लगा कर
ऊपर से अब नमक छिड़कने को तत्पर हैं आका
भजन करो कुछ खाकर या फिर मिलकर मारो फांका
अब तो आलम ऐसा जिसमें मरना भी है मुश्किल
जीने की क्या सोचें जब अपनें हीं बन जाएँ संगदिल
लानत है उन अफसर का जो करते रिश्वतखोरी
अपराधी की करनी करके , करते सीनाजोरी
शपथ राम की काम बहुत है लेकिन है मनमानी
बदलो मिलकर समय नहीं है करो न आनाकानी
वर्ना उजड़ गयी जो बगिया, देगा कौन सहारा ?
बीच भंवर में नैया होगी , होगा दूर किनारा
असरदार अफसर हों अपने राष्ट्र प्रेम हो ऊपर
दुश्मन कितना भी शातिर हो झटके खाए छूकर
अपने कर से घर भर जाये भ्रष्टाचार मिटा दो
देश तुम्हारा देश प्रेमियों सबको अब समझा दो
आगे आओ खुद को समझो अपनी है यह बगिया
आगे ही आगे तब जाये समय का सुन्दर पहिया

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