कड़वा करेला हूँ
मैंने तो मांगा था बस टेबल का एक कोना
ये नहीं था कहीं से भी चांदी का या फिर सोना
ऊपर से नहीं था यह कहीं से भी आपका
मगर क्या कर सकता हूँ मैं उस शाप का
जिसे झेल रहा हूँ बस झेलने के लिए
क्या जीवन ही बना है बस खेलने के लिए ?
वाणी से तो आप मधुर हैं पर क्या करें व्यवहार का
जवाब नहीं है अपने अनोखे सरकार का
रौनक होती होगी महफ़िल में मगर मैं अकेला हूँ
माफ़ करना मेरे मालिक मैं तो कड़वा करेला हूँ ।।
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