मंगलवार, 1 मई 2012

          शराबी 

अद्धे से श्रद्धा किया पौवे से जब प्रेम 
परदेशी देसी मिले लेकिन शाम की टेम
लेकिन शाम की टेम टमाटर खीरा का हो चखना 
साथ में सोडा , ठंढा पानी बोतल लाकर रखना 
पास ही पाकेट भी सुटके का जम जाये जो महफ़िल 
कुछ दिन या कुछ वर्षों ही मिल जायेगी मंजिल 
किसी सड़क पर होगा एक दिन  अपना नया नजारा 
 बिखरे बाल व्यस्त सब कपडे जैसे कोई बेचारा 
एक एक कर तन में होगी हर दिन नई बिमारी 
लोग कहेंगे बड़े अदब से देखो विपदा ने मारी 
राशन पानी नहीं बचेंगे होगा घर में फांका  
माथे पर जो चोट लगे तो लगेगा उस पर टांका 
समय से पहले सम्हल गया तो होगी नहीं खराबी 
वर्ना बेजुबान बोलेंगे आया एक शराबी || 



कोई टिप्पणी नहीं:

ब्लॉग आर्काइव

मेरे बारे में