रविवार, 2 दिसंबर 2012


खुल कर जी लो यार 

मरने से डरने वाके क्या ख़ाक जीवन जी सकेंगे ?
जीवन है अमृत का प्याला  खाक अमृत पी सकेंगे ?

हर सफ़र डर कर गुजारा कहते फिरते शेर दिल
आ गई बिपदा जरा सी खोजते चूहे का बिल
क्या हुआ हम जो नहीं कोई तो होगा मंच पर
राह मे मिल जाए दुश्मन उससे भी हँस हँस कर मिल
दुश्मनों से दुश्मनी कर ख़ाक जीवन जी सकेंगे ?
जीवन है अमृत का प्याला  खाक अमृत पी सकेंगे ?
हम हमारे में डूबे पर कहते हैं हम आपके
पुण्य का परचम हाथों में काम करते पाप के
राम के हीं नाम पर कितनों ने करतब कर डाले
कर्म अपना छोड़ कर क्यों दंश झेलें शाप के
शाम जो ढल जाएगी क्या ख़ाक जीवन जी सकेंगे ?
जीवन है अमृत का प्याला  खाक अमृत पी सकेंगे ?
जीना है जो जीवन पलभर जी भर कर जी लेने दो
पीना है अमृत  का प्याला जी भर कर पी लेने दो
हों नहीं मदहोश लेकिन कल की सोचें आज हीं
होश हो अब हम सफ़र पर जोश भी भर लेने दो
परदेशी  पाठक कहता है खुल कर जी लो यार ।
काम यहाँ कर जाओ ऐसे जाने यह संसार ।।

कोई टिप्पणी नहीं:

मेरे बारे में