गुरुवार, 9 जुलाई 2009

भारतीय बजट
प्रणव मुख़र्जी पढ़ गए बजट देश का एक

हम अज्ञानी मानव मन में शंका आज अनेक

शंका आज अनेक कहां गई पहले वाली सोच

भूल गए मतदान के होते या फिर आ गई मोच

बजट बनाया जिसमें होंगे सस्ते टी बी फ्रिज

कम्यूटर भी बन जाएगा जीवन का एक ब्रिज

लेकिन पेंसन को क्यों छेडा जो अंतिम आधार

आधे से ज्यादा ले लेंगे कह कर बस साभार

लाले पड़े हैं दालों के अब सब्जी नहीं है सस्ती

क्या खाएं हम क्या पहनें हम कैसे होगी मस्ती

आज नहीं अब हाथ हमारे कल भी नहीं हमारा

खुशाली का जुड़वां भाई अपना पाँव पसारा

जाएँ कहाँ बता दो दादा शहर नहीं अब अपना

गावों की तो बात न पूछो वह तो कब से सपना

आगे अगर न रे गा जैसी हो कोई स्कीम

पंजीकरण करा लें जाकर साथ में पूरी टीम

बिना काम ही दाम मिलेगा ऊपर से बस छुट्टी

जाते जाते जुड़ जायेगी जीवन में वह मिटटी

या फिर बोलो बन जाएँ हम भी कोई अल्पसंख्यक

जाने क्यों अपराधी जैसे दीखते अब बहु संख्यक

तेरी नजरों में आ जाएँ क्या है वह तरकीब

पुरुष जाती ऊपर से हिन्दू ऐसी ख्कन नशीब

कह पाठक कर जोर सुनो जी सबको मानो एक

बजट सभी सद्भाव पूर्ण हो काम करो अब नेक

नागेन्द्र पाठक ( दिल्ली )

बुधवार, 8 जुलाई 2009

रख कर सबकी लाज

आजादी किसको मिली कौन यहाँ आजाद

सब के सब परेसान हैं कितने तो बर्बाद

कितने तो बर्बाद याद आती है वही गुलामी

हर नुक्कड़ चौराहे पर मिलती है यहाँ निशानी

भाषा से हम भारतवासी बनते पड़े हैं सारे

सत्ता में अंग्रेजी बैठी हिंदी वाले हारे

देसी खाना दोष पूर्ण है पिज्जा बर्गर अच्छा

सूट बूट में झूठ बोल कर बन जाते हैं सच्चा

फिर भी हम आजादी की करते हैं बातें मिलकर

कर देते हैं उसे वोट जो शोषण करता जमकर

क्यों हैं हम कमजोर सोंच में कैसी अपनी फितरत

कौन यहाँ पर दूर करेगा मन में फैली नफरत

हिन्दू हैं तो भारतवासी मुस्लिम क्या परदेसी

भेदभाव के कारण कम हीं बनते यहाँ स्वदेसी

जात पात का भेद भाव अब पहले से गहराया

ऊपर से नेताओं ने भी हम सबको बहकाया

आई अब आतंकवाद की कैसी काली छाया

कौन किसे समझाए जब इन सबके पीछे माया

नीति नियंता बन बैठे अब जिनकी सोच है छोटी

छेत्रवाद दिखलाते हैं वे जिनकी नियत खोटी

ऐसे हीं आजाद देश में हम हैं हिन्दुस्तानी

आँखों के आगे होती है कितनों की मनमानी

कह पाठक कर जोर सुनो जी नेता मंत्री आज

वापस कर दो आजादी को रख कर सबकी लाज

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