सोमवार, 12 दिसंबर 2011

जीवन जैसे बुलबुला



जीवन जैसे बुलबुला


चार दिनों का वक्त मिला


उसकी चाहत चलती जाये


पल में पानी में मिला


जीवन जैसे बुलबुला

बुधवार, 7 दिसंबर 2011



कहाँ से चले हम कहाँ आ गये हैं ?


नहीं कुछ पता हम कहाँ जा रहे हैं


मंजिल मिले या भटकना पड़े पर ,


पहुंचना है एक दिन जहां जा रहे हैं



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