रविवार, 30 जनवरी 2011

सोचे हम मिलकर अभी

सोचें हम मिलकर अभी
माली हो कमजोर जब, लुट जाते हैं बाग़
हवा चले जो तेजी से, लग जाती है आग
हाल देस का है कुछ ऐसा, बेमतलब तकरार
होते हर दिन नए घोटाले, सकते में सरकार
सुगम नहीं राहें यहाँ, बैठे हैं बेईमान
मुखड़ा लेकर सज्जन का, मुश्किल है पहचान
जो जितना शातिर यहाँ, उतनी मीठी वाणी
अपने भी बचते नहीं, सबकी गजब कहानी
सोचें हम मिलकर अभी, किसका कितना दोष
समय सुहाना निकल गया, उड़ने को है होश

गुरुवार, 27 जनवरी 2011

बजने लगा है बैंड
मानवता को मार कर भर कर अपना जेब
लाल टमाटर बन गए या फिर बन गए सेव
पैसा है परदेस में खुद बन बैठे नाग
काले धन के कोढ़ ने लगा दिया है दाग
अरबो खरबों पहुँच गया मजे में स्वीटजरलैंड
बदहाली अपने यहाँ बजने लगा है बैंड

सोमवार, 17 जनवरी 2011

कैसे मांगेंगे वे वोट ?



कीमत जब पेट्रोल की सुरसा बनती जाये


जाने ही अनजाने सबके मुहँ से निकले हाय


करते जाते हैं सदा मर्म स्थल पर चोट


कल वे कैसे मांगेंगे आकर हमसे वोट ?


नागेन्द्र पाठक ( दिल्ली )

शनिवार, 15 जनवरी 2011

दहशत में मौज

पेरिस बनने चली थी दिल्ली , बन बैठी न्यूयार्क
दहशत के अंधियारे में , होने लगा स्पार्क
शाल ओढ़, ऐ . सी . में बैठी , शीला दीक्षित चुपचाप
अपराधी बे खौफ हैं , क्या कर लेंगे आप ?
दरिया दिल दिल्ली पुलिश , खोज रही है रोज
जाये जो पकड़ में , कर लेगा वह मौज

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

सत्य की डगर

नए साल की नई किरण बन नई ज्योति बिखराउंगी
हूँ भारत की वीर पुत्री बन कर लक्ष्मी दिखलाउंगी
कटती गाएं , जलती बहुएँ छाया घोर अन्धेरा है
बच्चों की मुस्कान छीन कर कहते नया सवेरा है
गांधी गौतम की धरती आतंकवाद को सहन करे
भ्रस्टाचारी भरे पड़े सब कहते तेरा मेरा है
मिटा सकी न पीर पराई दीपक सा जल जाउंगी
दिखा सकी न डगर सत्य का मिटटी में मिल जाउंगी
हाथों में मेरे मशाल मन मंदिर अब उजियारा है
अपना प्रदेश क्या सारा देश हमें प्राणों से भी प्यारा है
हार नहीं स्वीकार हमें हसरत है आगे आने की
लगन लगी अब कुछ करने की यही हमारा नारा है
मिले सफलता जैसे तैसे उसको भी ठुकाराउंगी
दिखा सकी न डगर सत्य का मिटटी में मिल जाउंगी
दिखा सकी न डगर सत्य का मिटटी में मिल जाउंगी
एक भारतीय नारी

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

लेकर आये प्याज

प्याज नहीं अब प्याज है वह तो एक अनार
कितनों के आंसू बहे कितने पड़े बीमार
कितने पड़े बीमार गजब है देखो इसकी करनी
कितने तो ऊपर जा पहुंचे कितने पकडे धरनी
कड़ी मसक्कत कर रहे नेता और अधिकारी
मदर डेरी के बूथों पर प्याज मिले सरकारी
लेकिन ऊँची और ऊँची जब कीमत चढ़ती जाए
जनता की परेशानी से तब मनमोहन घबराए
पगड़ी पहनी, कुर्ता डाला , साफ़ कराया चश्मा
जमाखोरी करने वालों पर चले लगाने एस्मा
लेकिन गर्जन करते निकले मंडी के व्यापारी
लगी मनाने आगे आकर अपनी शीला न्यारी
क्या होगा अब हाल हमारा देखो हे भगवान्
देना चाहो जो अगर देदो एक वरदान
नयन निरंतर बह रहे सुन लो विनती आज
हाल चाल जो लेने आये लेकर आए प्याज

मेरे बारे में