शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008

सबूत

सबूत

अन्धकार गहराया फिर ले आतंकी का वेश
मानवता शर्माती जिससे डरता है परिवेश
डरता है परिवेश बिना कारण मरते लोग
अंग भंग भी हो जाते हैं कैसा है दुर्योग
ऊपर से कुछ देश इन्हें अब प्रश्रय भी देते हैं
समाधान देने के बदले अनुदान लेते हैं
पता सभी को कौन है जालिम कौन कहाँ बैठा है
लेकिन जल कर जाने क्यों वह जस्सी जैसा ऐंठा है
बनता है अनजान निरंतर भेजे जो बलवाई
करता है इनकार उन्हें जो उसके अपने भाई
कब तक चुप बैठेंगे अपने कब तक झूठ छिपेगा
कब तक मरेंगे उसके अपने कितना साजिश रचेगा
मांग रहा अब भी सबूत जो स्वतः प्रमाणित होता है
जितना भी समझाया उसको वह तो आपा खोता है
अगर नहीं जो माना फिर भी पडेगा उसको रोना
मिल जायेंगे सभी सबूत जब पडेगा उसको खोना

सबूत

क्या सबूत दे भारत उसको जिसकी आँखें बंद
समझ नहीं है सच का जिसको लगा रहा पैबंद
लगा रहा पैबंद निरंतर धोखा दे दुनिया को
करता है इनकार मगर पहचान जहा अपनों को
कैसे बोले उनको अपना सब अल्लाह के बन्दे
जिनकी करनी है कुछ ऐसी कहते हैं सब गंदे
मगर आग अब लगी दिलों में दोनों और बराबर
दर्द सभी का है समान पर करता सदा निरादर
लड़ने को आतुर बैठा वह देकर जिनको संरक्षण
कल को कालिख मलेंगे वे ही कर जायेंगे भक्षण
ऐसे में बनता सबूत जो जनता उसको देगी
कौन है अपना कौन पराया सबका लेखा लेगी

गुरुवार, 25 दिसंबर 2008

काश की हम पंछी बन जाते

काश की हम पंछी बन जाते
नील गगन में उड़ते जाते
सीमा सरहद कुछ न होता
हँसते गाते बस मुस्काते
काश की हम पंछी बन जाते

कुदरत का अनमोल खजाना
मकसद होता उसे सजाना
शाम सुहानी सबकी होती
गुन गुन गाते न घबराते
काश की हम पंछी बन जाते

बगिया होती सबको प्यारी
सबके सब होते अधिकारी
करते चुहल कभी आपस में
अपनों को हंस कर अपनाते
काश की हम पंछी बन जाते

अपनी सबको आज पड़ी है
अनचाही दिवार खड़ी है

इतने ऊँचे पहुँच नहीं पर ,
पर होते तो पार कराते
काश की हम पंछी बन जाते

मंगलवार, 23 दिसंबर 2008

बयान

बयान
धुले नहीं हैं अंतुले जिनकी तेज जुबान
नजरें अब तक ऊँची कैसे देकर ग़लत बयान
देकर कोरी बयान मसीहा बनने का था सपना
ऊपर वाले से डरते हैं क्या कर लेगा अपना
ऊपर वाला शरम के मारे न जाने क्या सोचे
लेकिन निचे वाले कब तक अपने बालों को नोचे
हालत है गंभीर मगर उनको अपनी ही पड़ी है
पाक बना बैठा है पागल जिसकी सरकार अडी है
वक्त नजाकत समझो प्यारे बदलो अपनी करनी
कहते स्वयं को देश भक्त तो शर्माती है धरनी


बयान
सजग हुई सरकार अब देने लगी बयान
लगता है होने वाला है जल्दी हीं मतदान
जल्दी हीं मतदान नहीं है उनको कोई फुरसत
आतंकी पहले भी आकर दिखलाते थे फितरत
अब तक अपने आका मोहन बजा रहे थे बंशी
ताज नरीमन ओबेराय में बजी इसी से घंटी
चलो देर से आए लेकिन होगी कभी समीक्षा
जीना सबका अधिकार है नहीं कहीं से भिक्षा
युद्ध करो या कूट नीति पर बंद करो तुम रोना
घुट घुट कर जीने से अच्छा एक बार है मरना

रविवार, 14 दिसंबर 2008

गली और उसका दर्द

गली नाम की चीज

निरंतर कटती और

बटती रहती है

बदले हालत में वह

बेमौत मरती रहती है

उसकी चीख सुनी अनसुनी कर

हम अपने अधिकार पर अडे रहते हैं

और गली बेचारी

निरंतर अपने आप में

सिकुड़ती सहमती रहती है

सोचती है सदा सम्पूर्णता के लिए

तड़पती है अपनी सम्पन्नता के लिए

बिपन्नता की निशानी नालियां

हरदम बजबजाती रहती है

कोई छोड़ जाता है वहां पर कूड़ा

बना जाता है कोई गड्ढा या फोडा

चौडी गलियन भी संकरी होकर

सुबकती और घबराती रहती है

कभी कोई बाढ़ लगाता है

फूल और पौधे लगाने के लिए

कहीं कोई दिवार खड़ी करता है

अपना अधिकार जताने के लिए

उलझ जाते हैं कभी कपड़े और कभी लोग

नाम होता है उस गली का

और छोड़ जाते हैं उसे

बेबस रोने और शर्माने के लिए \\

बुधवार, 10 दिसंबर 2008

कसम तुम्हें है भारत की

दशको बीते आजादी के क्या क्या हमने पाया है ?
प्रेम भाव और भाईचारा क्या कुछ नहीं गंवाया है ?
आया जो मतदान का मौसम छेड़ रहे तुम जख्मों को
कभी जाती कभी धर्म को लेकर सबने बहुत सताया है
छोडो भी अब भेद बढाना कहते जिसे सियासात भी
रहने भी दो मिलजुल कर अब कसम तुम्हें है भारत की
हिंदू मुस्लिम भाई हैं हम कैसा सुंदर नाता है
देव स्थल हैं मन्दिर मस्जिद शीश नवाना आता है
गुरु जनों की पावन धरती ईसा को भी प्यारी है
देश प्रेम है सबके अंदर प्यार निभाना आता है
कुर्सी होगी तुमको प्यारी धरती मेरी नियामत की
छोडो भी बेकार की बातें कसम तुम्हें है भारत की
नर और नारी एक बराबर क्यों उनको बहकाते हो ?
शक्ति की करते हैं पूजा इसको भी झुठलाते हो
हक समान है हम सबका पर कुछ कर्तव्य हमारे हैं
रहने भी दो ताल मेल अब क्यों सबको भरमाते हो
सोते रहे हो पॉँच बरस अब मौका दिया शिकायत की
बनो भी सच्चे देश भक्त अब कसम तुम्हें है भारत की
युवा जन प्रतिभाशाली पर उनको भी बहकाते हो
बिना परिश्रम मिले सफलता क्यों उनको समझाते हो ?
आँगन में आतंकवाद है कल का आलम क्या होगा
आग उगलने लगी हैं गलियाँ तुम तो इन्हें भुनाते हो
शर्माती है मानवता तो बनती भाव हिकारत की
सुध बुध लेना सीखो सबकी कसम तुम्हें है भारत की
बाहर निकलो आँखें खोलो देखो दुनिया बदल गई
आपस में हम लड़ते हैं पर सबकी किश्मत बदल गई
करता है कोई क्षेत्र वाद प्रतिवाद करे मनमानी पर
'पाठक परदेसी' की फितरत हसरत फिरसे मचल गई
आओ अब तो हाथ मिला लो गुजरे वक़्त शरारत की
रहने दो गुलजार ये गलियां कसम तुम्हें है भारत की
Nagendra Pathak
दावा महा शक्ति का
महा शक्ति बनने का दावा करते नहीं अघाते हैं
लेकिन क्यों आतंकवाद से ख़ुद को नहीं बचाते हैं ?
नहीं surakshit आज कहीं हम उत्तर हो या दक्षिण
खून से लथपथ पड़ी है धरती पूरब हो या पश्चिम
इस पर करे सियासत कोई सहन नहीं कर पाते हैं
महा शक्ति बनने का दावा करते नहीं अघाते हैं
आतंकी आते हैं लेकिन सरकारें तो सोती हैं
मरते हैं जब बेगुनाह तो अपनी धरती रोती है
लेकिन देकर त्याग पत्र का नाटक करते नेता गण
कण कण में आक्रोश भरा जन मानस आपा खोती है
महा mahim bhi जान समझ कर चुप चुप समय बिताती हैं
महा शक्ति बनने का दावा करते नहीं अघाती हैं
laskar हो या मुजाहिदीन सबने ललकारा भारत को
गोला बारूद लेकर जो थर्राया कई इमारत को
आए कैसे यक्ष प्रश्न अब सबके मन की उलझन है
सिमी हो या नक्शल वादी सबको मिली महारत है
राज नीति करते नेता गणलेकिन कब शर्माते हैं
महा शक्ति बनने का दावा करते नहीं अघाते हैं
छोडो गद्दी शासन करना सोंपो सत्ता सेना को
आ जाओ अब साथ हमारे पालें तोता मैना को
तुम सब जब कमजोर स्वयं हो तुमसे क्या रक्षा होगी
साथ हमारे मर कर देखो बंद करो अब रोना को
तेरे कारण हीं आतंकी आकर हमें सताते हैं
महा शक्ति बनने का दावा सिरे से झुठलाते हैं
' पाठक परदेसी '

बोलो जय जय हिन्दुस्तान

मुंबई हो या हो आसाम, चलना सीखो सीना तान

क्षेत्रवाद का छोड़ो नारा, बोलो जय जय हिन्दुस्तान

सिरफिरे दो-चार यहाँ पर, रहते हैं गद्दार यहाँ पर

करते हैं अपनी मनमानी, मरते हैं कई बार यहाँ पर

शर्म नहीं आती है उनको, विष बुझी बातें करते हैं

मगर एकता का है बंधन, सब के सब हकदार यहाँ पर

हत्यारे तुम वोट की खातिर, क्यों बनते हो अब अनजान

श्रम के बल पर जीना सीखो, बोलो जय जय हिन्दुस्तान

इतिहास में दर्ज़ सभी हैं, करते हैं सबका सम्मान

शेर समझ मत घर के चूहे, बाहर तुम भी करो प्रयाण

करते हैं शक्ति की पूजा, सरस्वती में सदा रुझान

आराध्या रहीं हैं लक्ष्मी, मेरी, मत रहना एकदम अनजान

शान्ति का पैगाम हमारा, फिर से मत करना अपमान

क्षेत्रवाद का छोड़ो नारा, बोलो जय जय हिन्दुस्तान

विद्वानों के वंशज होकर ज़ाहिल जैसे दिखते हो

वीर शिवा की संतानों में काहिल क्यों तुम बनते हो

कद के तुम हो कद्दावर पर दिल ने क्या आकार लिया

देश तुम्हारा अपना है, फिर बेमतलब क्यों डरते हो

हाथ बढ़ाओ साथ मिलेगा, जिसका तुम्हें नहीं अनुमान

क्षेत्रवाद का छोड़ो नारा, बोलो जय जय हिन्दुस्तान

भैया तुम कहते हो जब भी, क्या मैने प्रतिकार किया

राज हमें समझा दो तुम ही, कब हमने हथियार लिया

कदम-ताल तो करना सीखो, दुनिया ही घर-आँगन है

सात समंदर पार भी देखो, कितने सारे मधुवन हैं

आओ फिर से गले लगाओ, रहें नहीं गलियाँ सुनसान

क्षेत्रवाद का छोड़ो नारा, बोलो जय जय हिन्दुस्तान

बुधवार, 22 अक्तूबर 2008

हमारे नेता

बड़े हीं ओछे होते हैं जिन्हें हम नेता कहते हैं

नहीं इमान है इनका नहीं भगवान् है इनका

तेरे पैसे पर पलते हैं तुम्हीं पर राज करते हैं

यही गुमान है इनका यही बरदान है इनका

कहीं दंगा करवाते है किसी का जहाज जलवाते हैं

यही पहचान है इनका यही दूकान है इनका

कहीं झोली फैलाते हैं कहीं गोली बरसाते हैं

बड़ा बिरान मन इनका बडा परेशान मन इनका

कभी संसद में आते हैं कभी परिषद् को भाते हैं

यही अरमान है इनका यही farmaan है इनका

कभी ये wada करते हैं कभी ये सौदा करते हैं

नहीं jubaan है इनका नहीं sammaan है इनका

बड़े हीं अच्छे lagte थे जिन्हें हम चाचा kahge थे

बड़ा गुमान thaa jinkaa बडा sammaan thaa jinkaa

अगर चाहते जीना हर पल

अगर चाहते जीना हर पल एक पल को मरना होगा
जीवन है एक जंग भयंकर इससे तो लड़ना होगा
अपने सपने हों सब सुंदर , ये सारा जग एक समंदर
ढूंढ़ रहे हम महज सीपियाँ लेकर गोते इसके अन्दर
अगर चाहते पाना मोतीइंतजार करना होगा
जीवन है एक जंग भयंकर इससे तो लड़ना होगा
जब जब आंधी तेज चलेगी दवाजे भी स्वतः खुलेगी
बनेगी रहें पर्वत पर भी बला जो आए सभी टलेगी
नैया टूटे किस्मत रूठे भवसागर तरना होगा
जीवन है एक जंग भयंकर इससे तो लड़ना होगा
आए जग में कितना लेकर किस्मत की कुछ रेखा लेकर
साथ नहीं कुछ जाने वाला फिर क्यों जियें रोना रो कर
होना है जो अटल रहेगा उन सबको सहना होगा
जीवन है एक जंग भयंकर इससे तो लड़ना होगा

मंगलवार, 17 जून 2008

आज की महंगाई

महंगाई झेलकर हम बरबाद हो रहे हैं

व्यवसाई जितने भी हैं आबाद हो रहे हैं

मिलती है छुट उनको आता है जो इलेक्सन

किसको नहीं पता पर नाबाद हो रहे हैं ॥

कैसे खरीदें घिया किस भाव लायें तोरी

घर में कहीं भी रख लो होती है सारी चोरी

मिलती नहीं है रोटी भर पेट आज सबको

अरहर बना नियामत खाते हैं थोडी थोडी ॥

चावल चना मिलेगा किस भाव ये न पूछो

कड़वा बडा करेला नहीं राजमा की सोचो

फल दूध को भी लाये कुछ दिन हीं हुए हैं

बच्चों की फिश इतनी बीएस बाल को हीं नोचो ॥

चलता रहा जो ऐसा बन जायेंगे भिखारी

अपने हीं आका कल को हो जायेंगे दुखारी

आ जायेंगे सड़क पर तारों की छांव लेकर

जागो जरा समय से इतनी विनय हमारी ॥

आए थे एक दिन वो बतलाने कोई कारन

होने भी दो ओलम्पिक कर लेंगे सब निवारण

बेकार रो रहे हो ख़ुद को जरा संभालो

चलकर के चीन देखो कैसा वहां का आलम ॥

जीने का हक हमारा छीनो न आज हमसे

अफ़सोस आज सबका कुछ रोष है तुम्हीं से

बातें बड़ी न करना वरना न सुन सकेंगे

खाने दो रोटी सबको कल्याण है इसी से ॥

आपको मेरा ब्लॉग कैसा लगा ? अच्छा साधारण बेकार कह नहीं सकते


फ़िर से भारत देश में

कहते हैं हम भारत वासी अपना मथुरा अपना काशी
सत्य अहिंसा की धरती पर रहते थे पहले सन्यासी
अब तो पलते हैं आतंकी न जानें किस वेष में
होती हैं हत्याएं हरदिन बापू तेरे देश में ॥
करते हैं कन्या की पूजा नवरात्रों के आने पर
नारी का दर्जा है उंचा उनके बाहर आने पर
डर डर कर रहती हैं दोनों अपने ही परिवेस में
रोती हैं ललनाएं कितनी बापू तेरे देश में ॥
बुरा न देखो बुरा न सोचो बुरा न बोलो कहते थे
अपने अधिकारों की खातिर अनुशासन में रहते थे
तोड़ रहे हैं आज उसी को आकर कुछ आवेश में
अंधियारा गहराया अब तो बापू तेरे देश में ॥
कहाँ गया ईमान हमारा जिसके बल पर चलते थे
भूल गए बलिदान तुम्हारा जिसका दम हम भरते थे
बतला दो तुम कब आओगे वापस अपने देश में
इंतजार है बापू तेरा फ़िर से भारत देश में ॥

आज का युवा

मोटा चस्मा बिखरे बाल
मिची सी आँखें हरदम लाल
कान में छल्ला हाथ में बल्ला
बात करें वो खुल्लम खुल्ला
सुतवां ख़त और ठुड्डी काली
कपड़े जिनके जोकर वाली
कर में कंगन कान में फोन
कभी नहीं जो रहता मौन
डेटिंग वेटिंग बनती रहती
चलती गाड़ी कभी न रूकती
दिन भर रहती मुंह में चुइंगम
पूरब पश्चिम का हो संगम
मुंह खोलें तो डालें गुटका
कभी लगा लेते हैं सुटका
नृत्य करें और गायें गाना
बल्ले बल्ले ना रे ना ना
मोटी चेन तिरछे नैन
कभी न बोलें मीठे बैन
पिज्जा केक चले चहुँ ओर
इनका दिल बस मांगे मोर
नयन नशीले होठ रसीले
चाल चलें ये बल्ले बल्ले
सख्त जींस और टॉप है छोटा
मंद स्मित पर मन है खोटा
चले जमाने जग में माया
इनके जैसा युवा पाया ।

एक विचार

फूलों की कोमलता और काँटों की चुभन
दोनों हीं सिक्के के दो पहलू हैं ।
जो काँटों की चुभन से घबरा जाए
वह फूलों की कोमलता का भी अधिकारी नहीं है ।

नहीं करना

इतना भी ऊपर नहीं उड़ना जल जाएं पंख तेरे प्यारे
इतना भी नीचे नहीं रहना पंक लगे तन मन सारे
इतना भी भेद नहीं करना अपने हीं पूछें राज तेरी
इतना भी खुल कर नहीं रहना खींच लें तन की खाल तेरी
इतना भी शान नहीं करना मुश्किल में आए आन तेरी
इतना भी मान नहीं करना जो मिट जाए पहचान तेरी
इतना आहार नहीं करना निराहार की नौबत आ जाए
इतना भी अल्पाहार न कर जो सुंदर काया कृष हो जाए
इतना मन चंचल नहीं करना बनता भी काम बिगड़ जाए
इतना भी मंद मति न बन अवसाद ग्रस्त मन घबराए
इतना धन लोलुप नहीं बनना धन हीं तेरा शोषण कर ले
करना न नशा इतना भी कभी जो होश तुम्हारा गम कर दे ।

परिचय

सभी कविता प्रेमिओं को नागेन्द्र का नमस्कार ।
दोस्तों , मैं कोई स्थापित कवि नहीं हूँ , बस जीवन में घटने वाली घटनाओं से प्रभावित अपने मनोभावों को कलम के सहारे कागज पर उतार कर पुनः ब्लॉग के सहारे आप तक लाने का प्रयास कर रहा हूँ । नहीं मालूम इसमें कितना सफल हो पोंगा । परन्तु यदि आपका प्यार बना रहा तो मुझे आत्म संतुस्ती तो मिलेगी हीं आपको भी नीरस नहीं होना पडेगा । धन्यवाद !

ब्लॉग आर्काइव

मेरे बारे में