सोमवार, 29 मार्च 2010

नक्सलवादी न सम्हले तो पीछे तुम पछताओगे

नक्सलवादी न सम्हले तो पीछे तुम पछताओगे
अपने घर के आँगन बे मौत ही मारे जाओगे
तुम सब सच्चे बाकी झूठे कैसी रीत तुम्हारी है ?
अन्धकार में रहने वाले पिछडापन क्यों प्यारी है ?
बनते हो तुम भाग्य विधाता लेकिन शोषण करते हो
मार रहे तुम बेगुनाह को कैसी प्रीत तुम्हारी है ?
जग जायेगी जनता जिस दिन उस दिन क्या कर पाओगे ?
नक्सलवादी न सम्हले तो पीछे तुम पछताओगे |
तुम सब अच्छे मान गए हम लेकिन क्यों धमकाते हो ?
नौकरी पेशा करते हैं जो उनसे पैसा खाते हो
क्या तेरे करता धरता को करने को कुछ काम नहीं
या तुम उनको जान बुझ कर शोषक वर्ग बनाते हो ?
आज तुम्हारे रगों में पानी कल तुम क्या बतलाओगे ?
नक्सलवादी न सम्हले तो पीछे तुम पछताओगे ||
अन्न नहीं उपजे अफीम क्या यही तुम्हारा नारा है ?
हाथों में हथियार सभी के क्या तुमको अब प्यारा है ?
सोचो तेरे भी हम दम हैं वे भी मारे जायेंगे
हालत बद से बदतर है क्या तुमने कभी विचारा है ?
अपने घर में हम परदेसी तुम किसके घर आओगे ?
नक्सलवादी न सम्हले तो पीछे तुम पछताओगे |
रेल हमारी करें सवारी ऐसा क्या अपराध किया ?
तोड़ रहे तुम उसकी पटरी किसने क्या प्रतिकार किया ?
क्योंकि तुमको नापसंद क्यों हम सब प्रगतिवादी हैं
आँखें तुमने बंद किया बदहाली स्वीकार किया
जंगल जंगल भटक रहे तुम किस दिन वापस आओगे ?
नक्सलवादी न सम्हले तो पीछे तुम पछताओगे ||
देश हमारा तब हीं तुम हो इसको क्या झुठलाओगे
नक्सलवादी न सम्हले तो पीछे तुम पछताओगे ||

मंगलवार, 23 मार्च 2010

अपने घर क्यों नहीं आते हो

नक्सलवादी स्वयं को तुम ताकतवर कैसे कहते हो ?
गोला बारूद पास तुम्हारे फिर भी छिप कर रहते हो |
नहीं मानते तेरी बातें क्योंकि तुम भरमाते हो
समता की बातें कर करके समता को झुठलाते हो
किससे तुम लड़ने को तत्पर किसने क्या नुकसान किया ?
नौजवान नादान उन्हें भी बेमतलब बहकाते हो |
तुम हो खाली फिर बलशाली किसका बल दिखलाते हो ?
नक्सलवादी बोलो तुम ताकतवर क्यों कहलाते हो ?
बैठे कमजोर देश को शायद इसका पता नहीं
देशद्रोही परदेशी पिट्ठू कह दें तो भी खता नहीं
लाते हो व्यवधान निरंतर काम कोई हो सरकारी
होता है नुकशान हमारा इसका तुमको पता नहीं
कहते तुम मेरे संरक्षक मौत निरंतर लाते हो
नक्सलवादी बोलो तुम ताकतवर क्यों कहलाते हो ?
सड़क बंद रेलें रोकी बंद किया बाजारों को
हुआ हर्ज अब लाखों का बेकार किया हजारों को
क्यों तुमको चुपचाप सहें क्या काम किया है प्रगति का ?
दुनिया वाले देख रहे हैं तेरे सभी नजारों को
क्षेत्र अभी अपना अशांत क्यों आजादी झुठलाते हो ?
नक्शाल्वादी बोलो तुम तकतावार क्यों कहलाते हो ?
यदि देश है तब हीं हम हैं बरना होंगे परदेशी
आ जाओ वापस अपने घर त्यागो अपनी मदहोशी
देता है हथियार तुम्हें तो खबरदार कर दो उनको
बन बैठा बेकार का दुश्मन जैसे ऐंठा हो रस्सी
उगने दो शान्ति की फसलें क्यों बेकार डराते हो
नक्सलवादी बोलो तुम अपने घर क्यों नहीं आते हो ?

एक निवेदन

सभी कविता प्रेमिओं को नागेन्द्र का नमस्कार ।
दोस्तों , मैं कोई स्थापित कवि नहीं हूँ , बस अपने आस पास घटने वाली घटनाओं से प्रभावित अपने मनोभावों को कलम के सहारे कागज पर उतार कर अपने ब्लॉग के सहारे आप तक लाने का प्रयास कर रहा हूँ । नहीं मालूम इसमें कितना सफल हो पाउँगा । परन्तु यदि आपका प्यार बना रहा तो मुझे आत्म संतुस्ती तो मिलेगी हीं आपको भी निराश नहीं होना पडेगा । धन्यवाद !

बुधवार, 17 मार्च 2010

एक अपील नक्सलवादियों से

एक अपील नक्सलवादियों से

आगे आओ माओ वादी मिलकर तुमसे बात करें
काली करतूतों पर तेरी छोटा सा आघात करें
बन बैठे तुम भाग्य विधाता किसने यह अधिकार दिया
ग्रामीण हो या शहरी कोई किसने तुम्हें स्वीकार किया
खेल रहे तुम खून की होली आज अहिंसा की धरती पर
अन्धकार है तुमको प्यारी गुमनामी स्वीकार किया
क्या अपराध किया है हमने आओ उसकी बात
काली करतूतों पर तेरी छोटा सा आघात करें ||
नक्सलवादी कहलाकर तुम अपना धोंस जमाते हो
हथियारों के बल पर चलकर सबको यहाँ डराते हो
लाते हो बर्बादी हरपाल अपने ही घर आँगन में
लालच के पुतले तुम हरदिन भेद बढाते जाते हो
क्या है हालत आज हमारी आओ उसकी बात करें
काली करतूतों पर तेरी छोटा सा आघात करें ||
प्रगति के सब काम अधूरे कहाँ से आये खुशहाली
विद्यालय भवनों को तोड़ा शिक्षा में दी बदहाली
तेरी फितरत तुम ही जानो मेरा क्या इसमें लेना
जन्म भूमि जो गाँव तुम्हारे खाली क्यों करवाते हो ?
आज जहाँ तुम खड़े हो प्यारे आओ उसदी बात करें
काली करतूतों पर तेरी छोटा सा आघात करें ||
चीन नहीं है हमदम वह तो स्वार्थ साधना करता है
भारत की प्रगति को कायर सहन नहीं कर सकता है
तुम तो निकले बस एक मोहरे लाल सलाम लगाते हो
लेकिन दुश्मन छिप कर बैठा सामने आते डरता है
हो सपूत तुम मातृभूमि के आओ मिलकर बात करें
सांप सपोले जितने भी हैं उन पर एक आघात करें
समय अभी है न सम्हले तो कल को तुम पछताओगे
धरती अपनी नहीं रही तो बोलो कहाँ तुम जाओगे ?
लाओगे तुम कहाँ से शान्ति जो पहचान हमारी है
तिब्बत का क्या हाल हुआ क्या इसको भी भूल पाओगे ?
लानत भेजो उसपर जो हम सबको भरमाया है
अपने मन को रोशन कर लो अन्धकार गहराया है ||
आगे आओ माओवादी भारत की कुछ बात करें
चीन सदा से रहा है दुश्मन उसपर एक आघात करें ||

सोमवार, 15 मार्च 2010

भीमा नन्द

भीमानंद

वस्त्र गेरुआ लम्बे बाल
मीठी वाणी मोटी खाल
चाल निराली करनी काली
सत्ता पक्ष करे रखवाली
दूर दूर तक फैली माया
मनमोहक है जिसकी काया
लेकिन नाग वंश के जैसे
होता नहीं उसे मलाल ||
पूजा संध्या सब करवाता
धर्मं धुजंधर वह कहलाता
माया की महफ़िल का पोषक
कोई करता नहीं सवाल
इसीलिए करता मनमानी
जग जाहिर इसकी शैतानी
फिर भी जन मानस की चुप्पी
पैदा करता कई सवाल
आतंकी भी इससे पीछे
चला गया वह इतना नीचे
जन गन मन बस देख रही
है साँस रोक कर आँखें भींचे
इसीलिए तो इसको भाती
मदिरा सेवन और सबाब
कैसे साधू इसको बोलें
क्यों न अपनी आँखें खोलें
भेष बदल कर हमला करने
आया फिर से एक कसाब
साधू तो सज्जन होते हैं
पर दुःख कातर वे रोते हैं
सोते नहीं कभीजीवन में
सबका भला सदा करते हैं
आज ज़माना बदल गया क्यों
ये तो लगते एक नवाब ||
बात नहीं एक भीमानंद की
कितने अब भी ऐसे बंदी
करतब करके निंदनीय जो
बन जाते जैसे परवाज
आओ मिलकर खोलें पोल
अपना भी बनता है रोल
वर्ना बदनामी हीं होगी
ढोंगी जब होंगे सरताज ||

सोमवार, 8 मार्च 2010

सन्देश

सन्देश
वाह ठाकरे बंधू तुमने इतना कुछ फरमाया है
महाराष्ट्र के वासी सबको जी भरकर भरमाया है
कह कर हिंदूवादी तुम तो क्षेत्रवाद ही करते हो
कहते हो जिंदादिल लेकिन पग पग पर तुम मरते हो
मुंबई तेरी महाराष्ट्र भी हम तो भारत वासी हैं
या फिर बाहर वालों से तुम मन ही मन अब डरते हो
तोड़ फोड़ कर मार पीट कर जो तुमने फरमाया है
महाराष्ट्र के वासी सबको जी भरकर भरमाया है
मिले वोट सत्ता भी पाओ तेरा जो यह सपना है
कहते तुम जिनको मराठी वह तो तेरा अपना है
क्यों उनको संकीर्ण बना कर सीमा रेखा खींच रहे
रास्ट्र बड़ा या महाराष्ट्र इन बातों से क्या करना है
कर्मवीर जो जनता तेरी फिर ये क्यों फरमाया है
महाराष्ट्र के वासी सबको जी भरकर भरमाया है
एक बार तुम बाहर निकलो देखो दुनिया बदल गई
प्रगति पथ पर आकर अब तो हालत सबकी बदल गई
लेकिन तुम तो वहीँ अभी तक गड़बड़झाला करते हो
राह बनालो आगे आकर अंधी गलियाँ निकल गई
बनो नहीं बदनाम आज भारत ने तुम्हें पुकारा है
महाराष्ट्र के वासी सबको संदेशा भिजवाया है
महाराष्ट्र के वासी सबको संदेशा भिजवाया है

रविवार, 7 मार्च 2010

माटी की खुशबू

माटी की खुशबू दिला दो रे भाई
जिस पर न्योछावर है साड़ी खुदाई
वो नदिया का पानी वनों की रवानी
नहीं भूल पाया हूँ कोई निशानी
वो बागों के झूले वो उड़ते बगुले
वो गलियाँ पुरानी वो मिट्टी के चूल्हे
वो गेहूं की बाली भरी थी या खाली
सभी को पता था सभी थे सवाली
न दिखती है सरसों न दिखती है राई
वो माटी की खुसबू दिला दो रे भाई ||
लड़कपन में लडती वो लड़कों की टोली
वो फागुन में आती थी हुडदंग होली
वो सावन का आना नदी में नहाना
वो पूजा का मौसम गया क्यों ज़माना
वो मक्के की बाली वो स्वाद निराली
वो गन्ने की खेती वो मीठी सी गाली
वो प्यारी सी दुनिया हुई क्यों पराई
वो माटी की खूसबू दिला दो रे भाई ||
कहाँ आ गया मै कहर ढ़ा गया मैं
कैसी ये बस्ती शहर आ गया मैं
नहीं कोई सुनता सभी भागते हैं
किसकी कहूँ मैं सभी आंकते हैं
कभी मांगते हैं ये पहचान मेरी
कभी जांचते हैं वे छोटी सी गठरी
समझ पाऊं मैं न करूँ क्या गुसाईं
वो माटी की खूसबू दिला दो रे भाई ||
वो माटी की खूसबू दिला दो रे भाई ||

मंगलवार, 2 मार्च 2010

बुलंदी

बुलंदी

मुश्किलों को साथ लेकर जो नहीं चल पायेगा
इस जमाने में बुलंदी वो कहाँ से पायेगा

हो बिमारी या पलायन या हो बिपदा की घडी
कष्ट पर हो कष्ट या फिर आपदा हो आ पड़ी
आग पर चलना पड़े या पर्वतों की श्रृंखला
सामने हो शेर या फिर मौत हो आकर खड़ी
वक्त आने पर नहीं जो आत्मबल दिखलाएगा

इस जमाने में बुलंदी वो कहाँ से पायेगा ||

क्यों हमारी राह में बस फूल हीं खिलते रहें ?
क्यों नहीं आगे बढ़ें हम शूल का स्वागत करें ?
क्यों कभी कमजोर बन कर मांगते हैं हम दुआ?
क्यों नहीं खुद हीं डगर पतवार भी बनते चलें ?
राह हो दुर्गम मगर जो चलने से घबराएगा
इस जमाने में बुलंदी वो कहाँ से पायेगा ||

सफल होना चाहते तो गरल भी स्वीकार कर
उन्नति जो चाहते तो कष्ट अंगीकार कर
जिंदगी जीना जो चाहो हर कदम मरते चलो
मुश्किलों के सामने तुम शीश को नीचा न कर
नाज जो निज कर्म पर हो जाह बनता जाएगा
हर जमाने में बुलंदी पर वही राग पायेगा ||

मेरे बारे में