समय का पहिया चलता जाये न जाने किस ओर
हरदिन हवा बदलते देखा सुबह शाम और भोर
सुबह शाम और भोर भयंकर लगते सभी नज़ारे
भ्रष्टाचार कटार लिए सबके आगे हुंकारे
मालामाल हुए सब मंत्री कहते सेवक खुद को
महंगाई की मार निरंतर पड़ती जाये सबको
उनको क्या वे पञ्च बरस में बन जाते हैं राजा
कदम कदम पर जन जन का अब बजता जाये बाजा
काले धन के बादल देखो बरसे बाहर जाकर
मालामाल हुए परदेसी उनको गले लगा कर
ऊपर से अब नमक छिड़कने को तत्पर हैं आका
भजन करो कुछ खाकर या फिर मिलकर मारो फांका
अब तो आलम ऐसा जिसमें मरना भी है मुश्किल
जीने की क्या सोचें जब अपनें हीं बन जाएँ संगदिल
लानत है उन अफसर का जो करते रिश्वतखोरी
अपराधी की करनी करके , करते सीनाजोरी
शपथ राम की काम बहुत है लेकिन है मनमानी
बदलो मिलकर समय नहीं है करो न आनाकानी
वर्ना उजड़ गयी जो बगिया, देगा कौन सहारा ?
बीच भंवर में नैया होगी , होगा दूर किनारा
असरदार अफसर हों अपने राष्ट्र प्रेम हो ऊपर
दुश्मन कितना भी शातिर हो झटके खाए छूकर
अपने कर से घर भर जाये भ्रष्टाचार मिटा दो
देश तुम्हारा देश प्रेमियों सबको अब समझा दो
आगे आओ खुद को समझो अपनी है यह बगिया
आगे ही आगे तब जाये समय का सुन्दर पहिया
मंगलवार, 27 सितंबर 2011
सोमवार, 5 सितंबर 2011
कहते उसको सजा नहीं
राहें हों आशान अगर उन पर चलने का मजा नहीं
आ जाये जो मुश्किल कोई कहते उसको सजा नहीं
पथरीली ऊँची नीची पगडण्डी पर चल कर देखो
दुर्गम गहन अन्धकार में अपने पासे तो फेंको
डर है ! डर के आगे भी दुनियाँ सतरंगी होती है
कर लो करतब मनचाहे पर स्वार्थ कि रोटी मत सेंको
मिले सफलता जैसे तैसे कहते उसको बजा नहीं
आ जाये जो मुस्किल कोई कहते उसको सजा नहीं
मानव मन कठपुतली जिसकी डोर उसी के हांथों में
रंग बदलना चाहो जितने हो जाती है बातों में
सोच हमारी हो हठ धर्मी , काम बिगड़ता जाता है
आगे उलझन बढ़ जाती है नींद न आती रातों में
कम पाकर संतुस्टी हो तो कहते उसको कजा नहीं
आ जाये जो मुश्किल कोई कहते उसको सजा नहीं
जीवन है अनमोल मगर हम समझ न पाए महिमा को
सीधी सच्ची रहें अच्छी समझ न पाए गरिमा को
भटक रहे हम राहों में तो कौन बचाने आयेगा
खुद हीं धर्म अर्थ बन जाएँ क्यों समय बिताएं सपनों में
बन मिशाल ले लो मशाल इससे अच्छी कोई फिजा नहीं
आ हीं जाये मुश्किल कोई कहते उसको सजा नहीं
आ जाये जो मुश्किल कोई कहते उसको सजा नहीं
पथरीली ऊँची नीची पगडण्डी पर चल कर देखो
दुर्गम गहन अन्धकार में अपने पासे तो फेंको
डर है ! डर के आगे भी दुनियाँ सतरंगी होती है
कर लो करतब मनचाहे पर स्वार्थ कि रोटी मत सेंको
मिले सफलता जैसे तैसे कहते उसको बजा नहीं
आ जाये जो मुस्किल कोई कहते उसको सजा नहीं
मानव मन कठपुतली जिसकी डोर उसी के हांथों में
रंग बदलना चाहो जितने हो जाती है बातों में
सोच हमारी हो हठ धर्मी , काम बिगड़ता जाता है
आगे उलझन बढ़ जाती है नींद न आती रातों में
कम पाकर संतुस्टी हो तो कहते उसको कजा नहीं
आ जाये जो मुश्किल कोई कहते उसको सजा नहीं
जीवन है अनमोल मगर हम समझ न पाए महिमा को
सीधी सच्ची रहें अच्छी समझ न पाए गरिमा को
भटक रहे हम राहों में तो कौन बचाने आयेगा
खुद हीं धर्म अर्थ बन जाएँ क्यों समय बिताएं सपनों में
बन मिशाल ले लो मशाल इससे अच्छी कोई फिजा नहीं
आ हीं जाये मुश्किल कोई कहते उसको सजा नहीं
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