सोमवार, 12 दिसंबर 2011

जीवन जैसे बुलबुला



जीवन जैसे बुलबुला


चार दिनों का वक्त मिला


उसकी चाहत चलती जाये


पल में पानी में मिला


जीवन जैसे बुलबुला

बुधवार, 7 दिसंबर 2011



कहाँ से चले हम कहाँ आ गये हैं ?


नहीं कुछ पता हम कहाँ जा रहे हैं


मंजिल मिले या भटकना पड़े पर ,


पहुंचना है एक दिन जहां जा रहे हैं



बुधवार, 30 नवंबर 2011

हव़ा तो हव़ा है




हव़ा में सभी, हम सभी में हव़ा है



हव़ा जो नहीं, सब हव़ा हीं हव़ा है



हव़ा जो चली, हम हव़ा हो लिए पर



नहीं हाथ कुछ भी, हव़ा तो हव़ा है

मंगलवार, 27 सितंबर 2011

समय का पहिया

समय का पहिया चलता जाये न जाने किस ओर
हरदिन हवा बदलते देखा सुबह शाम और भोर
सुबह शाम और भोर भयंकर लगते सभी नज़ारे
भ्रष्टाचार कटार लिए सबके आगे हुंकारे
मालामाल हुए सब मंत्री कहते सेवक खुद को
महंगाई की मार निरंतर पड़ती जाये सबको
उनको क्या वे पञ्च बरस में बन जाते हैं राजा
कदम कदम पर जन जन का अब बजता जाये बाजा
काले धन के बादल देखो बरसे बाहर जाकर
मालामाल हुए परदेसी उनको गले लगा कर
ऊपर से अब नमक छिड़कने को तत्पर हैं आका
भजन करो कुछ खाकर या फिर मिलकर मारो फांका
अब तो आलम ऐसा जिसमें मरना भी है मुश्किल
जीने की क्या सोचें जब अपनें हीं बन जाएँ संगदिल
लानत है उन अफसर का जो करते रिश्वतखोरी
अपराधी की करनी करके , करते सीनाजोरी
शपथ राम की काम बहुत है लेकिन है मनमानी
बदलो मिलकर समय नहीं है करो न आनाकानी
वर्ना उजड़ गयी जो बगिया, देगा कौन सहारा ?
बीच भंवर में नैया होगी , होगा दूर किनारा
असरदार अफसर हों अपने राष्ट्र प्रेम हो ऊपर
दुश्मन कितना भी शातिर हो झटके खाए छूकर
अपने कर से घर भर जाये भ्रष्टाचार मिटा दो
देश तुम्हारा देश प्रेमियों सबको अब समझा दो
आगे आओ खुद को समझो अपनी है यह बगिया
आगे ही आगे तब जाये समय का सुन्दर पहिया

सोमवार, 5 सितंबर 2011

कहते उसको सजा नहीं

राहें हों आशान अगर उन पर चलने का मजा नहीं
आ जाये जो मुश्किल कोई कहते उसको सजा नहीं
पथरीली ऊँची नीची पगडण्डी पर चल कर देखो
दुर्गम गहन अन्धकार में अपने पासे तो फेंको
डर है ! डर के आगे भी दुनियाँ सतरंगी होती है
कर लो करतब मनचाहे पर स्वार्थ कि रोटी मत सेंको
मिले सफलता जैसे तैसे कहते उसको बजा नहीं
आ जाये जो मुस्किल कोई कहते उसको सजा नहीं
मानव मन कठपुतली जिसकी डोर उसी के हांथों में
रंग बदलना चाहो जितने हो जाती है बातों में
सोच हमारी हो हठ धर्मी , काम बिगड़ता जाता है
आगे उलझन बढ़ जाती है नींद न आती रातों में
कम पाकर संतुस्टी हो तो कहते उसको कजा नहीं
आ जाये जो मुश्किल कोई कहते उसको सजा नहीं
जीवन है अनमोल मगर हम समझ न पाए महिमा को
सीधी सच्ची रहें अच्छी समझ न पाए गरिमा को
भटक रहे हम राहों में तो कौन बचाने आयेगा
खुद हीं धर्म अर्थ बन जाएँ क्यों समय बिताएं सपनों में
बन मिशाल ले लो मशाल इससे अच्छी कोई फिजा नहीं
आ हीं जाये मुश्किल कोई कहते उसको सजा नहीं

रविवार, 19 जून 2011

बाबा जी अनशन पर बैठे साथ बहुत से लोग

काला धन वापस लाने का बना नहीं संयोग

बना नहीं संयोग जतन अब करने लगे है सारे

सरकारी अड़ियल रुख से टकराकर सब हारे


इतना धन परदेश पड़ा कि हम सब सोच न पायें
लेकिन आलम देश में ऐसा सोचें क्या हम खाएं

कर को भरते भरते सबका हालत हो गया खास्ता

बाजारों में नहीं मिलेगा आज कहीं कुछ सस्ता

आगे आकर बाबाजी ने मिल कर अलख जगाया

दिल्ली से पातंजलि पीठ तक अपना मंच सजाया

लेकिन सत्ता के अनुरागी बैठे आँखें भींचे

सोच रहे हैं भ्रष्ट लिस्ट में आ जाएँ न नीचे

लगने लगी है दिल्ली अब तो भ्रष्टाचारी ढाबा

अलख जगाने को तत्पर हैं कितने सारे बाबा








शनिवार, 18 जून 2011

लोकपाल के सन्दर्भ में




पानी में मछली रहे अपने मद में चूर

बाहर तो आकर वह देखे दुनियां की दस्तूर


दुनियाँ की दस्तूर तभी तो अकाल ठिकाने आये


न सम्हले तो तड़प तड़प कर अपने प्राण गँवाये


वैसे हीं सत्ता धारी तुम करो न आना कानी


जन जन के सेवक तुम सब हो करो नहीं मनमानी


अन्ना के अनशन को समझो लोकपाल आने दो


बनता है जो शख्त नियम तो उसको बन जाने दो


कल को तुम भी सुखी रहोगे होगी न नादानी


धरती पर क्या आसमान में मिलेगा तुमको पानी



शनिवार, 11 जून 2011

कम्बल ओढ़े घी पीते हैं

नेताओं को नमन है जिनकी कृति अपार
भारत की धरती पर जन्मे करते वहीँ प्रहार

कहने को ज्ञानी सभी उनको है विश्वास
काट रहे अपनी हीं शाखा बन कर कलि दास

पार्टी हो कोई यहाँ सबके सब हैं एक
बोल वचन मीठे मगर मंशा नहीं है नेक

सत्ता में आते सभी करते हैं कोहराम
आये दिन के घोटालों से मुह से निकले राम

एक बार की जीत से पांच बरस की छुट्टी
कम्बल ओढ़े घी पीते हैं कर जनता से कुट्टी

शुक्रवार, 10 जून 2011

अपना घर परदेश बना दो

यह रचना उन नेताओं को समर्पित है जो देश को अपनी जागीर और सरकार को अपनी संपत्ति समझते हैं साथ ही घोटाला और भ्रष्टाचार को अपना धर्म मान बैठे हैं प्रस्तुत है 'अपना घर परदेश बना दो ' :-----

हे नेता हड़ताल करा दो
काम बंद और जाम करा दो
तुम्हें नहीं भूलेगा भारत
कशी मथुरा कृष्ण मिटा दो
तुम हो ज्ञानी तुम हो ज्ञाता
भारत के हो भाग्य विधाता
चलो बढाते जाति बंधन
अब तो अपना ओट हटा दो
गठबंधन में धाक तुम्हारी
मिलेगी निश्चय अगली बारी
शोर मचाना तुमसे सिखा
संसद में तकरार करा दो
हे नेता हथियार गिरा दो
संग संग ही जंग करा दो
शान्ति था पैगाम हमारा
हिंसा की तुम हवा बहा दो
कहीं जाती कहीं धर्म के नाम पर
जगह जगह दंगा करवा दो
समता समता जपते जपते
समता को श्मशान भिजा दो
काम तुम्हारा बन जाएगा
आपस में हीं ठन जाएगा
अर्थ निति की आड़ में चल कर
जनता को अब जगह दिखा दो
नेता tum आदर्श हमारे
हम तो सेवक सदा तुम्हारे
सुबह सवेरे नाम जपेंगे
एक अदद खोखा दिलवा दो
हे नेता मदिरा पिलवा दो
बर्गर पिज्जा हमें खिला दो
रुखी रोटी बहुत हीं खाए
केटंकी कुछ और खुला दो
हे नेता इतिहास बना दो
अपने गुण उसमें लिखवा दो
कितने पैसे बना चुके हो
जनता को अब आज बता दो
आजादी पड़ गई पुरानी
नई रवानी इसे दिला दो
महंगाई को और बढ़ा कर
अपना घर परदेश बना दो
अपना घर परदेश बना दो

बुधवार, 8 जून 2011

डूबा दो इनकी तरनी

गहरे दलदल में फँसी कांग्रेसी सरकार
मर्ज भयंकर हो गया कैसे हो उपचार
कैसे हो उपचार चतुर और समझें खुद को ज्ञानी
करनी सबकी काली उसपर करते हैं मनमानी
मतिभ्रम में मनमोहन जिनका सोनिया एक सहारा
कहने को वह सबला लेकिन दिखता नहीं किनारा
मिली लूट की छुट सभी को मंत्री हो या नेता
मौज मजे में व्यापारी पर बेबस हम सब क्रेता
ऐसे में बाबाजी आकर दे गए कड़वी बूटी
अन्ना ने अनसन कर डाले लेकिन नींद न टूटी
खिसक रही है धरती निचे , छत भी उड़ता जाये
सबके सब आकंठ डूबे तो बोलो कौन बचाए ?
काला धन तो काला है पर कैसे बोलें काला ?
परदेशों में पड़ा है लेकिन है तो इनका ताला
भारतवासी भ्रम न पालो ये क्यों बदलें करनी ?
आगे आओ खुद को समझो डुबादो इनकी तरनी

रविवार, 27 फ़रवरी 2011

वर्ल्ड कप 2011

दुनिया वाले देख कर रह जायेंगे दंग
भारत के सपूतों तुमको जितनी होगी जंग
जैसे हिन्दुस्तान सबको प्राणों से भी प्यारा है
दो हजार ग्यारह का वर्ल्ड कप हमारा है

रविवार, 30 जनवरी 2011

सोचे हम मिलकर अभी

सोचें हम मिलकर अभी
माली हो कमजोर जब, लुट जाते हैं बाग़
हवा चले जो तेजी से, लग जाती है आग
हाल देस का है कुछ ऐसा, बेमतलब तकरार
होते हर दिन नए घोटाले, सकते में सरकार
सुगम नहीं राहें यहाँ, बैठे हैं बेईमान
मुखड़ा लेकर सज्जन का, मुश्किल है पहचान
जो जितना शातिर यहाँ, उतनी मीठी वाणी
अपने भी बचते नहीं, सबकी गजब कहानी
सोचें हम मिलकर अभी, किसका कितना दोष
समय सुहाना निकल गया, उड़ने को है होश

गुरुवार, 27 जनवरी 2011

बजने लगा है बैंड
मानवता को मार कर भर कर अपना जेब
लाल टमाटर बन गए या फिर बन गए सेव
पैसा है परदेस में खुद बन बैठे नाग
काले धन के कोढ़ ने लगा दिया है दाग
अरबो खरबों पहुँच गया मजे में स्वीटजरलैंड
बदहाली अपने यहाँ बजने लगा है बैंड

सोमवार, 17 जनवरी 2011

कैसे मांगेंगे वे वोट ?



कीमत जब पेट्रोल की सुरसा बनती जाये


जाने ही अनजाने सबके मुहँ से निकले हाय


करते जाते हैं सदा मर्म स्थल पर चोट


कल वे कैसे मांगेंगे आकर हमसे वोट ?


नागेन्द्र पाठक ( दिल्ली )

शनिवार, 15 जनवरी 2011

दहशत में मौज

पेरिस बनने चली थी दिल्ली , बन बैठी न्यूयार्क
दहशत के अंधियारे में , होने लगा स्पार्क
शाल ओढ़, ऐ . सी . में बैठी , शीला दीक्षित चुपचाप
अपराधी बे खौफ हैं , क्या कर लेंगे आप ?
दरिया दिल दिल्ली पुलिश , खोज रही है रोज
जाये जो पकड़ में , कर लेगा वह मौज

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

सत्य की डगर

नए साल की नई किरण बन नई ज्योति बिखराउंगी
हूँ भारत की वीर पुत्री बन कर लक्ष्मी दिखलाउंगी
कटती गाएं , जलती बहुएँ छाया घोर अन्धेरा है
बच्चों की मुस्कान छीन कर कहते नया सवेरा है
गांधी गौतम की धरती आतंकवाद को सहन करे
भ्रस्टाचारी भरे पड़े सब कहते तेरा मेरा है
मिटा सकी न पीर पराई दीपक सा जल जाउंगी
दिखा सकी न डगर सत्य का मिटटी में मिल जाउंगी
हाथों में मेरे मशाल मन मंदिर अब उजियारा है
अपना प्रदेश क्या सारा देश हमें प्राणों से भी प्यारा है
हार नहीं स्वीकार हमें हसरत है आगे आने की
लगन लगी अब कुछ करने की यही हमारा नारा है
मिले सफलता जैसे तैसे उसको भी ठुकाराउंगी
दिखा सकी न डगर सत्य का मिटटी में मिल जाउंगी
दिखा सकी न डगर सत्य का मिटटी में मिल जाउंगी
एक भारतीय नारी

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

लेकर आये प्याज

प्याज नहीं अब प्याज है वह तो एक अनार
कितनों के आंसू बहे कितने पड़े बीमार
कितने पड़े बीमार गजब है देखो इसकी करनी
कितने तो ऊपर जा पहुंचे कितने पकडे धरनी
कड़ी मसक्कत कर रहे नेता और अधिकारी
मदर डेरी के बूथों पर प्याज मिले सरकारी
लेकिन ऊँची और ऊँची जब कीमत चढ़ती जाए
जनता की परेशानी से तब मनमोहन घबराए
पगड़ी पहनी, कुर्ता डाला , साफ़ कराया चश्मा
जमाखोरी करने वालों पर चले लगाने एस्मा
लेकिन गर्जन करते निकले मंडी के व्यापारी
लगी मनाने आगे आकर अपनी शीला न्यारी
क्या होगा अब हाल हमारा देखो हे भगवान्
देना चाहो जो अगर देदो एक वरदान
नयन निरंतर बह रहे सुन लो विनती आज
हाल चाल जो लेने आये लेकर आए प्याज

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