शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

बदल भी डालो यह संसार



कन्यां तुम कमजोर नहीं क्यों सहन करोगी अत्याचार ?
बन कर काली आओ फिर से बदल भी डालो यह संसार ।। 
तुम जननी घर घर की ज्योति जीवन देने वाली हो , 
तुम बहना , बेटी भी तुम तो साथ निभाने वाली हो 
शर्म से आँखें झुक जाती हैं ह्रदय बिदारक दृश्यों से 
तुम हीं  सदा से इस धरती पर समता लाने वाली हो ।।
 भूल गई तुम अपनी शक्ति बढ़ने लगा है पापाचार 
बन कर काली आओ फिर से बदल भी डालो यह संसार ।। 

मंदिर में मूरत  की पूजा लगता महज दिखावा है 
मन में जिनके पाप भरा वे कहते क्या पहनावा है 
बातों की बतकही बनाने मीडिया में कितने आ बैठे 
चुप चुप अब तक मनमोहन जी इसका एक पछतावा है ।।
बेशक अपना या हो पराया करना होगा अब प्रतिकार 
बन कर काली आओ फिर से बदल भी डालो यह संसार ।। 

और न आंसू बहने दो अब उठा लो घुटनों से चेहरा 
जला दो दानव दल को पल में और न आँचल को लहरा 
लिख लो अपनी नई  कहानी बन कर झांसी की रानी 
रोग लगा जब इस समाज को डाल  दो इस पर एक पहरा ।।
हे दुर्गा दुर्मति शमन  कर सिखा दो सबको सद्व्यवहार 
हे काली मतवाली बन कर बदल भी डालो यह संसार ।। 

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

नए अछूत

नए अछूत 

बनिया ब्राह्मण राजपूत 
राजनीति के नए अछूत 
उनकी किसको है परवाह 
चाहे निकले मुंह से आह 
लोकतंत्र में दोयम दर्जा 
चुका रहे बरसों का कर्जा 
भूल हुई क्या कहो हमारी 
मारी गई है मति तुम्हारी 
आरक्षण एक हद तक अच्छा 
लेना उसको बन कर सच्चा 
लेना उसको बन कर सच्चा 

रविवार, 9 दिसंबर 2012

गोरा काला

तन के गोरे चले गए, कर गए मन को काला ।
एक दूजे को कोस रहे हम, पडा अकल पर ताला ।।

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012


 एफ . डी . आई 

एफ . डी . आई . एफ . डी . आई . 
बोलो बोलो कहाँ से आई 
देशी हो या परदेशी तुम 
अपनी हो या कोई पराई 
एफ . डी . आई . एफ . डी . आई . 
बोलो बोलो कहाँ से आई ।

संसद में जब हुआ हंगामा 
सबने देखा सबका ड्रामा 
मनमोहन जी जित गए पर 
बन नहीं पाए ;यहाँ ओबामा 
बड़े भयंकर कहते हैं सब 
ऐसी है तेरी परछाई ।
एफ . डी . आई . एफ . डी . आई . 
बोलो बोलो कहाँ से आई ।

सकते में सारे व्यापारी 
अन्धकार में सब अधिकारी 
पक्ष बिपक्ष समझ ना आये 
दिखती है  सबकी लाचारी 
कहते  हैं आफत की पुडिया 
दुनियाँ  भर  में हो दुखदाई 
एफ . डी . आई . एफ . डी . आई . 
बोलो बोलो कहाँ से आई 

आओ अब तो राह बनी है 
पाठक को परवाह नहीं है 
हम सब हैं माटी के पुतले 
दर्द बहुत  पर आह नहीं है 
आर्थिक मोर्चा फतह करो तुम 
समझो लेकिन पीर पराई 
एफ . डी . आई . एफ . डी . आई . 
न जानें तुम  कहाँ से आई 
देसी हो या परदेसी पर 
बन कर रहना अपनी ताई ।।

रविवार, 2 दिसंबर 2012


खुल कर जी लो यार 

मरने से डरने वाके क्या ख़ाक जीवन जी सकेंगे ?
जीवन है अमृत का प्याला  खाक अमृत पी सकेंगे ?

हर सफ़र डर कर गुजारा कहते फिरते शेर दिल
आ गई बिपदा जरा सी खोजते चूहे का बिल
क्या हुआ हम जो नहीं कोई तो होगा मंच पर
राह मे मिल जाए दुश्मन उससे भी हँस हँस कर मिल
दुश्मनों से दुश्मनी कर ख़ाक जीवन जी सकेंगे ?
जीवन है अमृत का प्याला  खाक अमृत पी सकेंगे ?
हम हमारे में डूबे पर कहते हैं हम आपके
पुण्य का परचम हाथों में काम करते पाप के
राम के हीं नाम पर कितनों ने करतब कर डाले
कर्म अपना छोड़ कर क्यों दंश झेलें शाप के
शाम जो ढल जाएगी क्या ख़ाक जीवन जी सकेंगे ?
जीवन है अमृत का प्याला  खाक अमृत पी सकेंगे ?
जीना है जो जीवन पलभर जी भर कर जी लेने दो
पीना है अमृत  का प्याला जी भर कर पी लेने दो
हों नहीं मदहोश लेकिन कल की सोचें आज हीं
होश हो अब हम सफ़र पर जोश भी भर लेने दो
परदेशी  पाठक कहता है खुल कर जी लो यार ।
काम यहाँ कर जाओ ऐसे जाने यह संसार ।।

खुल कर जी लो यार 

मरने से डरने वाके क्या ख़ाक जीवन जी सकेंगे ?
जीवन है अमृत का प्याला  खाक अमृत पी सकेंगे ?

हर सफ़र डर कर गुजारा कहते फिरते शेर दिल 

आ गई बिपदा जरा सी खोजते चूहे का बिल 

क्या हुआ हम जो नहीं कोई तो होगा मंच पर

राह मे मिल जाए दुश्मन उससे भी हँस हँस कर मिल

दुश्मनों से दुश्मनी कर ख़ाक जीवन जी सकेंगे ?
जीवन है अमृत का प्याला  खाक अमृत पी सकेंगे ?

हम हमारे में डूबे पर कहते हैं हम आपके 

पुण्य का परचम हाथों में काम करते पाप के 

राम के हीं नाम पर कितनों ने करतब कर डाले 

कर्म अपना छोड़ कर क्यों दंश झेलें शाप के 

शाम जो ढल जाएगी क्या ख़ाक जीवन जी सकेंगे ?
जीवन है अमृत का प्याला  खाक अमृत पी सकेंगे ?

जीना है जो जीवन पलभर जी भर कर जी लेने दो
पीना है अमृत  का प्याला जी भर कर पी लेने दो 

हों नहीं मदहोश लेकिन कल की सोचें आज हीं 

होश हो अब हम सफ़र पर जोश भी भर लेने दो 

परदेशी  पाठक कहता है खुल कर जी लो यार ।
काम यहाँ कर जाओ ऐसे जाने यह संसार ।।

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