रविवार, 19 जून 2011

बाबा जी अनशन पर बैठे साथ बहुत से लोग

काला धन वापस लाने का बना नहीं संयोग

बना नहीं संयोग जतन अब करने लगे है सारे

सरकारी अड़ियल रुख से टकराकर सब हारे


इतना धन परदेश पड़ा कि हम सब सोच न पायें
लेकिन आलम देश में ऐसा सोचें क्या हम खाएं

कर को भरते भरते सबका हालत हो गया खास्ता

बाजारों में नहीं मिलेगा आज कहीं कुछ सस्ता

आगे आकर बाबाजी ने मिल कर अलख जगाया

दिल्ली से पातंजलि पीठ तक अपना मंच सजाया

लेकिन सत्ता के अनुरागी बैठे आँखें भींचे

सोच रहे हैं भ्रष्ट लिस्ट में आ जाएँ न नीचे

लगने लगी है दिल्ली अब तो भ्रष्टाचारी ढाबा

अलख जगाने को तत्पर हैं कितने सारे बाबा








शनिवार, 18 जून 2011

लोकपाल के सन्दर्भ में




पानी में मछली रहे अपने मद में चूर

बाहर तो आकर वह देखे दुनियां की दस्तूर


दुनियाँ की दस्तूर तभी तो अकाल ठिकाने आये


न सम्हले तो तड़प तड़प कर अपने प्राण गँवाये


वैसे हीं सत्ता धारी तुम करो न आना कानी


जन जन के सेवक तुम सब हो करो नहीं मनमानी


अन्ना के अनशन को समझो लोकपाल आने दो


बनता है जो शख्त नियम तो उसको बन जाने दो


कल को तुम भी सुखी रहोगे होगी न नादानी


धरती पर क्या आसमान में मिलेगा तुमको पानी



शनिवार, 11 जून 2011

कम्बल ओढ़े घी पीते हैं

नेताओं को नमन है जिनकी कृति अपार
भारत की धरती पर जन्मे करते वहीँ प्रहार

कहने को ज्ञानी सभी उनको है विश्वास
काट रहे अपनी हीं शाखा बन कर कलि दास

पार्टी हो कोई यहाँ सबके सब हैं एक
बोल वचन मीठे मगर मंशा नहीं है नेक

सत्ता में आते सभी करते हैं कोहराम
आये दिन के घोटालों से मुह से निकले राम

एक बार की जीत से पांच बरस की छुट्टी
कम्बल ओढ़े घी पीते हैं कर जनता से कुट्टी

शुक्रवार, 10 जून 2011

अपना घर परदेश बना दो

यह रचना उन नेताओं को समर्पित है जो देश को अपनी जागीर और सरकार को अपनी संपत्ति समझते हैं साथ ही घोटाला और भ्रष्टाचार को अपना धर्म मान बैठे हैं प्रस्तुत है 'अपना घर परदेश बना दो ' :-----

हे नेता हड़ताल करा दो
काम बंद और जाम करा दो
तुम्हें नहीं भूलेगा भारत
कशी मथुरा कृष्ण मिटा दो
तुम हो ज्ञानी तुम हो ज्ञाता
भारत के हो भाग्य विधाता
चलो बढाते जाति बंधन
अब तो अपना ओट हटा दो
गठबंधन में धाक तुम्हारी
मिलेगी निश्चय अगली बारी
शोर मचाना तुमसे सिखा
संसद में तकरार करा दो
हे नेता हथियार गिरा दो
संग संग ही जंग करा दो
शान्ति था पैगाम हमारा
हिंसा की तुम हवा बहा दो
कहीं जाती कहीं धर्म के नाम पर
जगह जगह दंगा करवा दो
समता समता जपते जपते
समता को श्मशान भिजा दो
काम तुम्हारा बन जाएगा
आपस में हीं ठन जाएगा
अर्थ निति की आड़ में चल कर
जनता को अब जगह दिखा दो
नेता tum आदर्श हमारे
हम तो सेवक सदा तुम्हारे
सुबह सवेरे नाम जपेंगे
एक अदद खोखा दिलवा दो
हे नेता मदिरा पिलवा दो
बर्गर पिज्जा हमें खिला दो
रुखी रोटी बहुत हीं खाए
केटंकी कुछ और खुला दो
हे नेता इतिहास बना दो
अपने गुण उसमें लिखवा दो
कितने पैसे बना चुके हो
जनता को अब आज बता दो
आजादी पड़ गई पुरानी
नई रवानी इसे दिला दो
महंगाई को और बढ़ा कर
अपना घर परदेश बना दो
अपना घर परदेश बना दो

बुधवार, 8 जून 2011

डूबा दो इनकी तरनी

गहरे दलदल में फँसी कांग्रेसी सरकार
मर्ज भयंकर हो गया कैसे हो उपचार
कैसे हो उपचार चतुर और समझें खुद को ज्ञानी
करनी सबकी काली उसपर करते हैं मनमानी
मतिभ्रम में मनमोहन जिनका सोनिया एक सहारा
कहने को वह सबला लेकिन दिखता नहीं किनारा
मिली लूट की छुट सभी को मंत्री हो या नेता
मौज मजे में व्यापारी पर बेबस हम सब क्रेता
ऐसे में बाबाजी आकर दे गए कड़वी बूटी
अन्ना ने अनसन कर डाले लेकिन नींद न टूटी
खिसक रही है धरती निचे , छत भी उड़ता जाये
सबके सब आकंठ डूबे तो बोलो कौन बचाए ?
काला धन तो काला है पर कैसे बोलें काला ?
परदेशों में पड़ा है लेकिन है तो इनका ताला
भारतवासी भ्रम न पालो ये क्यों बदलें करनी ?
आगे आओ खुद को समझो डुबादो इनकी तरनी

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