शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

तपने लगी है धरती अपनी बहने लगा पसीना

इसीलिए तो आज दिसम्बर बन गया जून महीना

बन गया जून महीना पकने लगे हैं आम और जामुन

बहने लगी हवा कुछ ऐसी पूष बना है फागुन

शोर सभी कर कर के हारे कार्बन बढ़ता जाए

पिघल रहे अब हीम शिखर सब सिर धुन कर पछताए

प्रतिफल है मानव करनी का पेड़ों को जो काटा

कर के कुछ मनमानी अपनी धरती मां को बांटा

तन भेदन कर उर अंतर से खींचा इतना पानी

सदियों से मानव जीवन में मिले न जिसकी सानी

नदियाँ बन गईं सूखे नाले बिखरे अस्थि पंजर

उपजाऊ धरती बनने को आज चली है बंजर

समाधान है सब बातों का lekin कोई सोचे

परत स्वार्थ की मोटी जिस पर चल कर पडी हैं मोंचें

न सम्हाले जो अभी भी कल को होगी दुनियां खाली

अपनी वसुधा खूबसूरत है बनेगी बिष की प्याली

पादप अपने प्रिय सखा उनको अब पुनः मनाना है

पाकड़ पीपल नीम या बरगद सबको आज लगाना है

फल वाले पौधे लग जाएँ एक पंथ दो काज बने

परिपूर्ण होगी तब धरती मानव सदियों राज करे

पथरीले पथ होंगे सुखकर कुर मुर पत्ते गायेंगे

झूम उठेगी अपनी धरती खुशियाँ सभी मनाएंगे

कल कल करेंगी नदियाँ सारी पेड़ों के लहराने पर

झूम झूम बादल बरसेंगे पवन वेग थम जाने पर

शोक नहीं करना अब एक पल नहीं दिखाना नरमी

समाधान को हो जा तत्पर नहीं सहो अब गर्मी

गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

सबको मिलकर गाना है

रहम करो अब राज ठाकरे कब तक तुम भर्माओगे
अपनी हीं करनी से कल तुम जी भर कर पछताओगे
हम सब मानुस भारत भू के तुमको सीमा प्यारी है
बाहर निकलो आँखें खोलो देखो दुनियां न्यारी है
गली गली जब फूल खिलें हों फसलों की हरियाली हो
ऐसे में घर के कोने में क्यों फैली बदहाली हो ?
भाषा है भावों की नैया शब्दों की पतवार लिए
बंधन उसे बनाया तुमने बे मतलाब बल खाते हो
भारत माता तुम्हें पुकारे तोड़ो सीमा बंधन को
बदहाली से अभी बचा लो अपने सुन्दर उपवन को
वीर शिवा ने जिसको सींचा देश भक्ति के पानी से
खून बहाने को तत्पर हो क्यों अपनी मनमानी से
मुंबई हो या महाराष्ट्र सब भारत भाग्य विधाता हैं
उत्तर - दक्षिण , पूरब - पश्चिम सबकी अपनी गाथा है
नफरत मिली विरासत में अब प्यार बयार बहाना है
भारत की धरती है प्यारी सबको मिलकर गाना है
भारत की धरती है प्यारी सबको मिलकर गाना है

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