रविवार, 13 मई 2012

गली का दर्द



गली नाम की चीज 
निरंतर
कटती और बंटती रहती है 
बदले हालत में 
बेमौत मरती रहती है 
गाँव हो या शहर 
गलियों पर होता  रहता है कहर 
 उसकी चीख 
सुनी अनसुनी कर 
अड़े रहते हैं 
अपने अधिकार पर ||
गली बेचारी 
अपने आप में 
सिकुड़ती सहमती रहती है 
परन्तु सोचती है 
अपनी सम्पूर्णता के लिए 
तड़पती  है 
अपनी सम्पन्नता के लिए  
बिपन्न्ता की निशानियाँ 
नालियाँ
हरदम  बजबजाती रहती हैं 
कोई छोड़ जाता है वहाँ पर 
कूड़ा 
बना जाता है वहाँ पर 
एक गड्ढा 
जैसे हो फोड़ा 
चौड़ी गलियाँ भी 
संकरी हो जाती हैं 
ऐसे में गलियाँ 
रोती और घबराती हैं 
कभी कोई बाड़ लगाता  है
फूल और पौधे लगाने के लिए 
कोई दिवार कड़ी करजाता है 
अधिकार जताने के लिए 
उलझ जाते हैं लोग 
और कभी कपडे   
नाम होता है 
उस गली का 
छोड़ जाते हैं उसे 
बेबस
रोने और शर्माने के लिए ||

सोमवार, 7 मई 2012


     माँ 

आकाश जैसा विस्तृत
मखमल जैसा कोमल
पकड़ कर चलना सिखा था
जिसका आँचल
सोचता हूँ याद कर
ममता के उस ताने बाने को
बाँध लूँ छोटी सी गठरी
कविता की
माँ को उपहार देने के लिए
याद आते ही आँचल का कोना
खिल उठता है यह दिल खिलौना
जिसके सहारे बड़ा हुआ था
याद है बचपन के वे दिन
जब माँ ही सच थी , शाश्वत थी
और उसकी हर सीख थी
एक पत्थर की लकीर
ओस भरी रातों में ठंढ से ठिठुरता था जब
माँ की आँचल में छिप जाता था तब
बिना रजाई के भी मिल जाती थी गर्माहट
और
पल भर में गहरी नींद में सो जाता था मैं
घर के बाहर कितने भी बहते थे आंसू
आँचल की ओट मिलते हीं
खिल उठती थी होठों की मुस्कान
कभी चपत भी खाया था
मगर होते थे मीठे
यादें ताज़ी हैं उनकी ,
कदम दर कदम
याद है
जब मैं निकला था पहली बार
घर से
लम्बे प्रवास के लिए
माँ की ममता आँखों से निकल कर
आँचल को भिगो रही थी
और मैं
चल पडा था भारी मन से
उसके हाथों की बनी रोटी साथ लिए
खोजता हूँ माँ को आज ,
उसी पुराने घर में जाकर
खंडहर सा दिखता है वह ,
उसके वहां न मिलने पर
चला आता हूँ वापस खाली हाथ
मायूस मगर यादों को समेटे हुए
कोसता हूँ नियति के उन नियमों को
जिसने दूर कर दिया मुझे मेरी माँ से
मगर
वह तो सदा हीं मेरे पास है
मेरे मन में , अंतर्मन में , और कण कण में
                सपना मनी मनी

अपना सपना मनी मनी  , कसे भी बन जाएँ धनी
हाथ पाँव हिलने न पाए जीवन में हो हनी हनी 
अपना सपना मनी मनी , अपना सपना मनी मनी 
बिन बादल के बरसे पानी मिले लाभ पर नहीं हो हानी
बिन मांगे सब कुछ हो हाजिर काम बने पर सदा जुबानी 
आगे पीछे लगे हों सेवक खुले भाग्य भी देकर दस्तक 
पासों की अम्बार लगी हो दुनिया बोले राजा रानी 
राम करे ऐसा हो जाये और नहीं हो देर घनी 
अपना सपना मनी मनी , अपना सपना मनी मनी

हाथों में सोने के छल्ले खाएं हम हर दिन रसगुल्ले 
जो सोचें पल में मिल जाये जीवन भर हो बल्ले बल्ले 
सेहरा भी बंध जाये सर पर वो भी ऐसा सबसे हट कर 
आलिशान महल मिल जाये रहलें उसमें खुल्ले खुल्ले 
चांदी की चौखट हो घर में वो भी एकदम नई बनी 
अपना सपना मनी मनी , अपना सपना मनी मनी

लेकन सब आसन नहीं है अपनी तो पहचान नहीं है 
जीवन जंग बना है जैसे जिसमें तो आराम नहीं है 
मेहनत के बल पर जो पाओ उसमें अपनी सभी बनाओ 
अथक परिश्रम करो जो प्यारे तन मिटटी से सनी सनी 
सपना सच हो जाएगा और खेलोगे  तुम मनी मनी 
सपना सच हो जाएगा और खेलोगे  तुम मनी मनी 

रविवार, 6 मई 2012

                 आजादी 

कूड़े की क्या कहें कहानी क्या उसके  अरमान 

कूड़ा  तो   कूड़ा   मगर     कूड़ा    है    शैतान 

कूड़ा है शैतान  शरारत  करता है  हम  सब से 

हव़ा चले तो सड़क पर आये या गुजरे ऊपर से 

कभी कार के शीशे पर , जाम करे कभी चक्का 

सड़क पर कूड़ा फेंके कोई लगता है तब धक्का 

कूड़ेदान  में  फेंको  कूड़ा   होगी  क्या  बर्बादी 

मच्छर भी कंट्रोल में होंगे होगी तब  आजादी || 

शनिवार, 5 मई 2012

मन  से  कभी न  हारो

कल  का नहीं भरोसा जीना है आज  यारों 
डर डर  के जीना छोडो  डर  को डरा के मारो 
हँस  हँस  के हार सह लो तो जीत   है हमारी  
काली घटा घिरी तो उस पर भी रंग  डारो 
कल  का नहीं भरोसा जीना है आज  यारों 

रंगीन  सारी दुनिया आयाम  इतने सारे 
बाहर तो निकलो देखो सुन्दर सभी नज़ारे 
फूलों की क्यारियाँ है काँटों की महफ़िलें हैं 
फौलाद फूल  बन कर आतुर तुम्हें पुकारे 
राहों में धुल  फैले उनपर फुहार मारो 
कल  का नहीं भरोसा जीना है आज  यारों 

आओ  गले लगा लें खुशियाँ जो मिल   रही हैं 
स्वागत करो सभी की कलियाँ जो खिल रही है 
अरमान  होंगे पुरे जो भी सजाओ  सपने 
साहस  का साथ  जो मुफ्त मिल   रही है 
अब  जीत  है तुम्हारी    मन  से  कभी न  हारो 
कल  का नहीं भरोसा जीना है आज  यारों 

डर डर  के जीना छोडो  डर  को डरा के मारो 
डर डर  के जीना छोडो  डर  को डरा के मारो 

बुधवार, 2 मई 2012




                Nyaa Prabhaat

मन प्रशन्न अत्यंत है देखा नया प्रभात

जागने लगी है लालसा कट गई काली रात

सागर तट मुंबई बसे किसकी होगी आज

अन अधिकृत रहते सभी कहने लगा है राज



मंगलवार, 1 मई 2012

          शराबी 

अद्धे से श्रद्धा किया पौवे से जब प्रेम 
परदेशी देसी मिले लेकिन शाम की टेम
लेकिन शाम की टेम टमाटर खीरा का हो चखना 
साथ में सोडा , ठंढा पानी बोतल लाकर रखना 
पास ही पाकेट भी सुटके का जम जाये जो महफ़िल 
कुछ दिन या कुछ वर्षों ही मिल जायेगी मंजिल 
किसी सड़क पर होगा एक दिन  अपना नया नजारा 
 बिखरे बाल व्यस्त सब कपडे जैसे कोई बेचारा 
एक एक कर तन में होगी हर दिन नई बिमारी 
लोग कहेंगे बड़े अदब से देखो विपदा ने मारी 
राशन पानी नहीं बचेंगे होगा घर में फांका  
माथे पर जो चोट लगे तो लगेगा उस पर टांका 
समय से पहले सम्हल गया तो होगी नहीं खराबी 
वर्ना बेजुबान बोलेंगे आया एक शराबी || 



ब्लॉग आर्काइव

मेरे बारे में