मंगलवार, 17 जून 2008

आज की महंगाई

महंगाई झेलकर हम बरबाद हो रहे हैं

व्यवसाई जितने भी हैं आबाद हो रहे हैं

मिलती है छुट उनको आता है जो इलेक्सन

किसको नहीं पता पर नाबाद हो रहे हैं ॥

कैसे खरीदें घिया किस भाव लायें तोरी

घर में कहीं भी रख लो होती है सारी चोरी

मिलती नहीं है रोटी भर पेट आज सबको

अरहर बना नियामत खाते हैं थोडी थोडी ॥

चावल चना मिलेगा किस भाव ये न पूछो

कड़वा बडा करेला नहीं राजमा की सोचो

फल दूध को भी लाये कुछ दिन हीं हुए हैं

बच्चों की फिश इतनी बीएस बाल को हीं नोचो ॥

चलता रहा जो ऐसा बन जायेंगे भिखारी

अपने हीं आका कल को हो जायेंगे दुखारी

आ जायेंगे सड़क पर तारों की छांव लेकर

जागो जरा समय से इतनी विनय हमारी ॥

आए थे एक दिन वो बतलाने कोई कारन

होने भी दो ओलम्पिक कर लेंगे सब निवारण

बेकार रो रहे हो ख़ुद को जरा संभालो

चलकर के चीन देखो कैसा वहां का आलम ॥

जीने का हक हमारा छीनो न आज हमसे

अफ़सोस आज सबका कुछ रोष है तुम्हीं से

बातें बड़ी न करना वरना न सुन सकेंगे

खाने दो रोटी सबको कल्याण है इसी से ॥

आपको मेरा ब्लॉग कैसा लगा ? अच्छा साधारण बेकार कह नहीं सकते


फ़िर से भारत देश में

कहते हैं हम भारत वासी अपना मथुरा अपना काशी
सत्य अहिंसा की धरती पर रहते थे पहले सन्यासी
अब तो पलते हैं आतंकी न जानें किस वेष में
होती हैं हत्याएं हरदिन बापू तेरे देश में ॥
करते हैं कन्या की पूजा नवरात्रों के आने पर
नारी का दर्जा है उंचा उनके बाहर आने पर
डर डर कर रहती हैं दोनों अपने ही परिवेस में
रोती हैं ललनाएं कितनी बापू तेरे देश में ॥
बुरा न देखो बुरा न सोचो बुरा न बोलो कहते थे
अपने अधिकारों की खातिर अनुशासन में रहते थे
तोड़ रहे हैं आज उसी को आकर कुछ आवेश में
अंधियारा गहराया अब तो बापू तेरे देश में ॥
कहाँ गया ईमान हमारा जिसके बल पर चलते थे
भूल गए बलिदान तुम्हारा जिसका दम हम भरते थे
बतला दो तुम कब आओगे वापस अपने देश में
इंतजार है बापू तेरा फ़िर से भारत देश में ॥

आज का युवा

मोटा चस्मा बिखरे बाल
मिची सी आँखें हरदम लाल
कान में छल्ला हाथ में बल्ला
बात करें वो खुल्लम खुल्ला
सुतवां ख़त और ठुड्डी काली
कपड़े जिनके जोकर वाली
कर में कंगन कान में फोन
कभी नहीं जो रहता मौन
डेटिंग वेटिंग बनती रहती
चलती गाड़ी कभी न रूकती
दिन भर रहती मुंह में चुइंगम
पूरब पश्चिम का हो संगम
मुंह खोलें तो डालें गुटका
कभी लगा लेते हैं सुटका
नृत्य करें और गायें गाना
बल्ले बल्ले ना रे ना ना
मोटी चेन तिरछे नैन
कभी न बोलें मीठे बैन
पिज्जा केक चले चहुँ ओर
इनका दिल बस मांगे मोर
नयन नशीले होठ रसीले
चाल चलें ये बल्ले बल्ले
सख्त जींस और टॉप है छोटा
मंद स्मित पर मन है खोटा
चले जमाने जग में माया
इनके जैसा युवा पाया ।

एक विचार

फूलों की कोमलता और काँटों की चुभन
दोनों हीं सिक्के के दो पहलू हैं ।
जो काँटों की चुभन से घबरा जाए
वह फूलों की कोमलता का भी अधिकारी नहीं है ।

नहीं करना

इतना भी ऊपर नहीं उड़ना जल जाएं पंख तेरे प्यारे
इतना भी नीचे नहीं रहना पंक लगे तन मन सारे
इतना भी भेद नहीं करना अपने हीं पूछें राज तेरी
इतना भी खुल कर नहीं रहना खींच लें तन की खाल तेरी
इतना भी शान नहीं करना मुश्किल में आए आन तेरी
इतना भी मान नहीं करना जो मिट जाए पहचान तेरी
इतना आहार नहीं करना निराहार की नौबत आ जाए
इतना भी अल्पाहार न कर जो सुंदर काया कृष हो जाए
इतना मन चंचल नहीं करना बनता भी काम बिगड़ जाए
इतना भी मंद मति न बन अवसाद ग्रस्त मन घबराए
इतना धन लोलुप नहीं बनना धन हीं तेरा शोषण कर ले
करना न नशा इतना भी कभी जो होश तुम्हारा गम कर दे ।

परिचय

सभी कविता प्रेमिओं को नागेन्द्र का नमस्कार ।
दोस्तों , मैं कोई स्थापित कवि नहीं हूँ , बस जीवन में घटने वाली घटनाओं से प्रभावित अपने मनोभावों को कलम के सहारे कागज पर उतार कर पुनः ब्लॉग के सहारे आप तक लाने का प्रयास कर रहा हूँ । नहीं मालूम इसमें कितना सफल हो पोंगा । परन्तु यदि आपका प्यार बना रहा तो मुझे आत्म संतुस्ती तो मिलेगी हीं आपको भी नीरस नहीं होना पडेगा । धन्यवाद !

मेरे बारे में