रख कर सबकी लाज
आजादी किसको मिली कौन यहाँ आजाद
सब के सब परेसान हैं कितने तो बर्बाद
कितने तो बर्बाद याद आती है वही गुलामी
हर नुक्कड़ चौराहे पर मिलती है यहाँ निशानी
भाषा से हम भारतवासी बनते पड़े हैं सारे
सत्ता में अंग्रेजी बैठी हिंदी वाले हारे
देसी खाना दोष पूर्ण है पिज्जा बर्गर अच्छा
सूट बूट में झूठ बोल कर बन जाते हैं सच्चा
फिर भी हम आजादी की करते हैं बातें मिलकर
कर देते हैं उसे वोट जो शोषण करता जमकर
क्यों हैं हम कमजोर सोंच में कैसी अपनी फितरत
कौन यहाँ पर दूर करेगा मन में फैली नफरत
हिन्दू हैं तो भारतवासी मुस्लिम क्या परदेसी
भेदभाव के कारण कम हीं बनते यहाँ स्वदेसी
जात पात का भेद भाव अब पहले से गहराया
ऊपर से नेताओं ने भी हम सबको बहकाया
आई अब आतंकवाद की कैसी काली छाया
कौन किसे समझाए जब इन सबके पीछे माया
नीति नियंता बन बैठे अब जिनकी सोच है छोटी
छेत्रवाद दिखलाते हैं वे जिनकी नियत खोटी
ऐसे हीं आजाद देश में हम हैं हिन्दुस्तानी
आँखों के आगे होती है कितनों की मनमानी
कह पाठक कर जोर सुनो जी नेता मंत्री आज
वापस कर दो आजादी को रख कर सबकी लाज
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