बुधवार, 8 जुलाई 2009

रख कर सबकी लाज

आजादी किसको मिली कौन यहाँ आजाद

सब के सब परेसान हैं कितने तो बर्बाद

कितने तो बर्बाद याद आती है वही गुलामी

हर नुक्कड़ चौराहे पर मिलती है यहाँ निशानी

भाषा से हम भारतवासी बनते पड़े हैं सारे

सत्ता में अंग्रेजी बैठी हिंदी वाले हारे

देसी खाना दोष पूर्ण है पिज्जा बर्गर अच्छा

सूट बूट में झूठ बोल कर बन जाते हैं सच्चा

फिर भी हम आजादी की करते हैं बातें मिलकर

कर देते हैं उसे वोट जो शोषण करता जमकर

क्यों हैं हम कमजोर सोंच में कैसी अपनी फितरत

कौन यहाँ पर दूर करेगा मन में फैली नफरत

हिन्दू हैं तो भारतवासी मुस्लिम क्या परदेसी

भेदभाव के कारण कम हीं बनते यहाँ स्वदेसी

जात पात का भेद भाव अब पहले से गहराया

ऊपर से नेताओं ने भी हम सबको बहकाया

आई अब आतंकवाद की कैसी काली छाया

कौन किसे समझाए जब इन सबके पीछे माया

नीति नियंता बन बैठे अब जिनकी सोच है छोटी

छेत्रवाद दिखलाते हैं वे जिनकी नियत खोटी

ऐसे हीं आजाद देश में हम हैं हिन्दुस्तानी

आँखों के आगे होती है कितनों की मनमानी

कह पाठक कर जोर सुनो जी नेता मंत्री आज

वापस कर दो आजादी को रख कर सबकी लाज

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