मंगलवार, 17 जून 2008

नहीं करना

इतना भी ऊपर नहीं उड़ना जल जाएं पंख तेरे प्यारे
इतना भी नीचे नहीं रहना पंक लगे तन मन सारे
इतना भी भेद नहीं करना अपने हीं पूछें राज तेरी
इतना भी खुल कर नहीं रहना खींच लें तन की खाल तेरी
इतना भी शान नहीं करना मुश्किल में आए आन तेरी
इतना भी मान नहीं करना जो मिट जाए पहचान तेरी
इतना आहार नहीं करना निराहार की नौबत आ जाए
इतना भी अल्पाहार न कर जो सुंदर काया कृष हो जाए
इतना मन चंचल नहीं करना बनता भी काम बिगड़ जाए
इतना भी मंद मति न बन अवसाद ग्रस्त मन घबराए
इतना धन लोलुप नहीं बनना धन हीं तेरा शोषण कर ले
करना न नशा इतना भी कभी जो होश तुम्हारा गम कर दे ।

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